CLASS- 7 SCIENCE

 



CHAPTER- 4 अम्ल, क्षारक और लवण

NOTES


1. अम्ल- वे पदार्थ जिनका स्वाद खट्टा होता है, अम्ल कहलाते है। ऐसे पदार्थों की रासायनिक प्रकृति अम्लीय होती है। उदाहरण- दही, नींबू का रस, संतरे का रस आदि।

2. क्षारक- ऐसे पदार्थ जिनका स्वाद कड़वा होता है और जो स्पर्श करने पर साबुन जैसे लगते हैं, क्षारक कहलाते हैं। इन पदार्थों की प्रकृति क्षारकीय कहलाती है।

3. सूचक- कोई पदार्थ अम्लीय है अथवा क्षारकीय, इसका परीक्षण करने के लिए विशेष प्रकार के पदार्थों का उपयोग किया जाता है। ये सूचक कहलाते हैं। उदाहरण- हल्दी, लिटमस, गुड़हल की पंखुड़ियां आदि। 

4. हमारे आस-पास के प्रकृति सूचक-

1) लिटमस- सामान्य रूप से उपयोग किया जाने वाला प्राकृतिक सूचक लिटमस हैं। इसे लाइकेनों से निष्कर्षित किया जाता है। यह विलयन के रूप में अथवा कागज की पट्टियों के रूप में उपलब्ध होता हैं, जिन्हें लिटमस पत्र कहते हैं। यह लाल और नीले लिटमस पत्र के रूप में उपलब्ध होता हैं। अम्ल नीले लिटमस पत्र को लाल कर देते हैं और क्षार लाल लिटमस पत्र को नीला कर देते हैं। ऐसे विलयन, जो लाल अथवा नीले लिटमस पत्र के रंग को परिवर्तित नहीं करते, उदासीन विलयन कहलाते हैं।

2) हल्दी- हल्दी को विलयन या फिल्टर पेपर पर लगा कर सुखाकर हल्दी पत्र के रूप में प्रयोग किया जाता है। जब इस पत्र पर किसी क्षारक की बूंद डालते हैं, तो पत्र लाल रंग का हो जाता है। परन्तु यह अम्ल के साथ कोई अभिक्रिया नहीं करता। अम्ल को लाल हल्दी पत्र पर डालते हैं तो वह उसे पहले की अवस्था में ले आता है।

3) गुड़हल- गुडहल के पुष्प की कुछ पंखड़ियां बीकर में रखकर गर्म पानी मिलाइए। कुछ समय तक मिश्रण को रखने पर मिश्रण का जल रंगीन हो जाता है। यह विलयन अम्लीय विलियनों के साथ गुलाबी तथा क्षारकीय विलयनों को हरा कर देता है।

5. उदासीनीकरण- 
फिनांल्फथेलिन- यह क्षारकीय विलयन के साथ गुलाबी रंग देता है, जबकि अम्लीय विलयन के साथ रंगहीन रहता है।
  • जब किसी अम्लीय विलयन में क्षारकीय विलयन मिलाया जाता है तो दोनों विलयन एक दूसरे के प्रभाव को उदासीन कर देते हैं। दोनों की ही प्रकृति लुप्त हो जाती है।
  • लवण- उदासीनीकरण अभिक्रिया में नया पदार्थ निर्मित होता है, जो लवण कहलाता है।
  •  किसी अम्ल और किसी क्षारक के बीच होने वाली अभिक्रिया उदासीनीकरण कहलाती है। इस प्रक्रम में ऊष्मा के निर्मुक्त होने के साथ-साथ लवण और जल निर्मित होते हैं। उदाहरण- हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl) + सोडियम हाइड्रॉक्साइड (NaOH) → सोडियम क्लोराइड (NaCl) + जल (H₂O) + ऊष्मा।

दैनिक जीवन में उदासीनीकरण के उदाहरण-
  • अपाचन- हमारे आमाशय में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल पाया जाता है। यह भोजन के पाचन में हमारी सहायता करता है, लेकिन आमाशय में अम्ल की आवश्यकता से अधिक मात्रा होने से अपाचन हो जाता है। अपाचन से मुक्ति पाने के लिए हम दूधिया मैग्नीशियम जैसा कोई प्रतिअम्ल होते हैं जिसमें मैग्नीशियम हाइड्रांक्साइड होता है। यह अत्यधिक अम्ल के प्रभाव को उदासीन कर देता है।
  • चींटी का डंक- चींटी जब काटती है तो ये त्वचा में अम्लीय द्रव डाल देती है। डंक के प्रभाव को नमीयुक्त खाने का सोडा (सोडियम हाइड्रोजनकार्बोनेट) अथवा कैलेमाइन विलयन मलकर उदासीन किया जा सकता है, जिसमें जिंक कार्बोनेट होता है।
  • मृदा उपचार- रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग मृदा को अम्लीय बना देता है। जब मृदा अत्यधिक अम्लीय होती है, तो उसे बिना बुझा हुआ चूना (कैल्शियम आक्साइड) अथवा बूझा हुआ चूना (कैल्शियम हाइड्रांक्साइड) जैसे क्षारकों से उपचारित किया जाता है। यदि मृदा क्षारकीय हों, तो इसमें जैव पदार्थ मिलाए जाते हैं। जैव पदार्थ (कम्पोस्ट खाद) मृदा में अम्ल निर्मुक्त करते हैं, जो उसकी क्षारकीय प्रकृति को उदासीन कर देते हैं।
  • कारखानों का अपशिष्ट- कारखानों के अपशिष्ट में अम्लीय पदार्थ होते हैं, इन्हें जलाशयों व नदियों में विसर्जित करने से पहले क्षारकीय पदार्थ मिलाकर उदासीन किया जाता है।