CLASS-8 SCIENCE

 


CHAPTER- 6 जंतुओं में जनन

NOTES


1. जंतुओं में जनन की विधियां- 1. लैंगिक जनन, 2. अलैंगिक जनन।


1. लैंगिक जनन- इस प्रकार की विधि में नर तथा मादा युग्मक का संलयन होता है, लैंगिक जनन कहलाता हैं।

A. नर जनन अंग- नर जनन अंगों में एक जोड़ा वृषण, दो शुक्राणु नलिका तथा एक शिशिन (लिंग) होते हैं। वृषण नर युग्मक उत्पन्न होते हैं जिन्हें शुक्राणु कहते हैं।

  • हर शुक्राणु में कोशिका के सामान्य संघटक पाए जाते हैं।
  •  शुक्राणु एकल कोशिक होते हैं इनमें एक सिर, एक मध्य भाग एवं पूंछ होती है। शुक्राणु में पूंछ गमन करने में काम आती है।

B. मादा जनन अंग- मादा जननांगों में एक जोड़ी अंडाशय, अंडवाहिनी (डिंब वाहिनी) तथा गर्भाशय होता है। अंडाशय मादा युग्मक उत्पन्न करते हैं जिसे अंडाणु (डिंब) कहते हैं। गर्भाशय वह भाग हैं जहां शिशु का विकास होता है। शुक्राणु की तरह अंडाणु भी एकल कोशिका है।


C. निषेचन- जनन प्रक्रम का पहला चरण शुक्राणु और अंडाणु का संलयन हैं। शुक्राणु और अंडाणु का यह संलयन निषेचन कहलाता है।

  • निषेचन के समय शुक्राणु और अंडाणु संलयित होकर एक हो जाते हैं। निषेचन के परिणामस्वरूप युग्मनज का निर्माण होता है।
  • वह निषेचन जो मादा के शरीर के अंदर होता है आंतरिक निषेचन कहलाता है। उदाहरण- मनुष्य, गाय, कुत्ते तथा मुर्गी आदि।
  •  वह निषेचन जिसमें नर एवं मादा युग्मक का संलयन मादा के शरीर के बाहर होता है, ब्राह्मा निषेचन कहलाता है। उदाहरण- मछली, स्टारफिश जैसे जलीय प्राणी।

D. परखनली शिशु- कुछ स्त्रियों की अंडवाहिनी अवरूद्ध होती है। शुक्राणु मार्ग अवरूद्ध होने के कारण, अंडाणु तक नहीं पहुंच पाते। ऐसी स्थिति में डाक्टर (चिकित्सक) ताजा अंडाणु एवं शुक्राणु एकत्र करके उचित माध्यम में कुछ घंटों के लिए एक साथ रखते हैं जिससे IVF अथवा इनविटो निषेचन (शरीर से बाहर कृत्रिम निषेचन) हो सके।

  • अगर निषेचन हो जाता है तो युग्मनज को लगभग एक सप्ताह तक विकसित किया जाता है जिसके पश्चात उसे माता के गर्भाशय में स्थापित किया जाता है। माता के गर्भाशय में पूर्ण विकास होता है, तथा शिशु का जन्म सामान्य शिशु की तरह ही होता है। इस तकनीक द्वारा जन्मे शिशु को परखनली शिशु कहते हैं।

E. भ्रूण का परिवर्धन- निषेचन के परिणामस्वरूप युग्मनज, बनता है जो विकसित होकर भ्रूण में परिवर्धित होता है। युग्मनज लगातार विभाजित होकर कोशिकाओं के गोले में बदल जाता है। तत्पश्चात कोशिकाएं समूहीकृत होने लगती है तथा विभिन्न ऊतकों और अंगों में परिवर्धित हो जाती है। इस विकसित होती हुई संरचना को भ्रूण कहते हैं।

  • गर्भाशय में भ्रूण का निरन्तर विकास होता रहता है। धीरे-धीरे विभिन्न शारीरिक अंग जैसे कि हाथ, पैर, सिर, आंखें, कान इत्यादि विकसित हो जाते हैं।
  • भ्रूण की वह अवस्था जिसमें सभी शारीरिक भागों की पहचान हो सके गर्भ कहलाता है। जब गर्भ का विकास पूरा हो जाता हैं तो मां नवजात शिशु को जन्म देती है।
  • ब्राह्म निषेचन वाले जंतुओं में भ्रूण का विकास मादा के शरीर के बाहर ही होता हैं। भ्रूण अंडावरण के अंदर विकसित होता रहता है। भ्रूण का विकास पूर्ण होने पर अंडजोत्पति होती है।

F. जरायुज एवं अंडप्रजक जंतु-

1. जरायुज- वह जंतु जो सीधे ही शीशु को जन्म देते है जरायुज जंतु कहलाते हैं।

2. अंडप्रजक- वे जंतु जो अंडे देते हैं अंडप्रजक जंतु कहलाते हैं।

शिशु से व्यस्क- नवजात जन्में प्राणी अथवा अंडे के प्रस्फुटन से निकले प्राणी, तब तक वृद्धि करते रहते हैं जब तक कि वे व्यस्क नहीं हो जाते।

  • मेंढक का जीवनचक्र- अंडा -> टैडपोल (लारवा) -> व्यस्क।
  • कुछ विशेष परिवर्तनों के साथ टैडपोल का व्यस्क में रूपांतरण कायांतरण कहलाता है।

2.अलैंगिक जनन- ऐसा जनन जिनमें केवल एक ही जनक नए जीव को जन्म देता है अलैंगिक जनन कहलाता है।

  • हाइड्रा में मुकुल से नया जीव विकसित होता है इसलिए इस प्रकार के जनन को मुकुलन कहते हैं।

द्विखंडन- इस प्रकार के अलैंगिक जनन में जनक जीव विभाजित होकर दो संतति उत्पन्न करता है, द्विखंडन कहलाता है।

क्लोनिंग- किसी समरूप कोशिका या किसी अन्य जीवित भाग अथवा संपूर्ण जीव को कृत्रिम रूप से उत्पन्न करने की प्रक्रिया क्लोनिंग कहलातीं हैं।