CLASS-8 SCIENCE

 

CHAPTER- 1 फसल उत्पादन एवं प्रबंध

NOTES


1. सजीव भोजन से प्राप्त ऊर्जा का उपयोग विभिन्न जैविक प्रक्रमों, जैसे पाचन, श्वसन एवं उत्सर्जन के संपादन में करते हैं।

2. फसल- जब एक ही किस्म के पौधे किसी स्थान पर बड़े पैमाने पर उगाए जाते हैं, तो इसे फसल कहते हैं। उदाहरण- गेहूं की फसल का अर्थ है कि खेत में उगाए जाने वाले सभी पौधे गेहूं के हैं।

3. भारत एक विशाल देश है। यहां ताप आर्द्रता और वर्षा जैसी जलवायवी परिस्थितियां एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न है। इस विविधता के बावजूद, मोटे तौर पर फसलों को दो वर्गों में बांटा जा सकता है- 1. खरीफ फसल, 2. रबी फसल।
  •  खरीफ फसल- वह फसल जिन्हें वर्षा ऋतु में बोया जाता है, खरीफ फसल कहलाती है। भारत में वर्षा ऋतु सामान्यतः जून से सितम्बर तक होती है। उदाहरण- धान, मक्का, सोयाबीन, मूंगफली, कपास आदि।
  • रबी फसल- शीत ऋतु (अक्टूबर से मार्च तक) में उगाई जाने वाली फसलें रबी फसलें कहलाती है। उदाहरण- गेहूं, चना, मटर, सरसों, अलसी आदि।
  •  इसके अलावा, कई स्थानों पर दालें और सब्जियां ग्रीष्म में उगाई जाती है।
4. कृषि पद्धतियां- 1. मिट्टी तैयार करना 2. बुआई, 3. खाद एवं उर्वरक देना, 4. सिंचाई, 5. खरपतवार से सुरक्षा, 6. कटाई, 7. भण्डारण।

1. मिट्टी तैयार करना- फसल उगाने से पहले मिट्टी तैयार करना प्रथम चरण हैं। मिट्टी को पलटना तथा इसे पोला बनाना कृषि का अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है। इससे जड़े भूमि में गहराई तक जा सकती हैं। पोली मिट्टी, मिट्टी में रहने वाले केंचुओं और सूक्ष्मजीवों की वृद्धि करने में सहायता करती है। मिट्टी को उलटना- पलटना एवं पोला करना फसल उगाने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

  • जुताई- मिट्टी को उलटने-पलटने एवं पोला करने की प्रक्रिया जुताई कहलाती है। इसे हल चला कर करते हैं। हल लकड़ी अथवा लोहे के बने होते हैं। बुआई एवं सिंचाई के लिए खेत को समतल करना आवश्यक है। यह कार्य पाटल द्वारा किया जाता है।
  • कृषि-औजार- अच्छी उपज के लिए बुआई से पहले मिट्टी को भुरभुरा करना आवश्यक है। यह कार्य अनेक औजारों से किया जाता है। हल, कुदाल एवं कल्टीवेटर प्रमुख औजार।
  • हल- प्राचीन काल से ही हल का उपयोग जुताई, खाद/उर्वरक मिलाने, खरपतवार निकालने एवं मिट्टी खुरचने के लिए किया जाता रहा है। इसमें लोहे की मजबूत तिकोनी पत्ती होती है जिसे फाल कहते हैं। हल का मुख्य भाग लंबी लकड़ी का बना होता है जिसे हल-शैफ्ट कहते हैं। आजकल लोहे के हल तेजी से देसी लकड़ी के हल की जगह ले रहे हैं।
  • कुदाली- यह एक सरल औजार है जिसका उपयोग खरपतवार निकालने एवं मिट्टी को पोला करने के लिए किया जाता है।
  • कल्टीवेटर- आजकल जुताई ट्रेक्टर द्वारा संचालित कल्टीवेटर से की जाती है। कल्टीवेटर के उपयोग से श्रम एवं समय दोनों की बचत होती है।
2. बुआई- बुआई फसल उत्पादन का सबसे महत्वपूर्ण चरण हैं। किसान अधिक उपज देने वाले अच्छी गुणवत्ता वाले साफ एवं स्वच्छ बीजों को प्राथमिकता देते हैं।

  • बीजों का चयन- क्षतिग्रस्त बीज खोखलें हो जाते हैं और इस कारण हल्के होते हैं। अतः यह जल पर तैरने लगते हैं। अच्छे और स्वस्थ बीजों को क्षतिग्रस्त बीजों से अलग करने की यह एक अच्छी विधि है।
  • परम्परागत औजार- परंपरागत रूप से बीजों की बुआई में इस्तेमाल किया जाने वाला औजार कीप के आकार का होता है। बीजों को कीप के अंदर डालने पर यह दो या तीन नुकीले सिरे वाले पाइपों से गुजरते हैं। ये सिरे मिट्टी को भेदकर बीज को स्थापित कर देते हैं।
  • सीड-ड्रिल- आजकल बुआई के लिए ट्रेक्टर द्वारा संचालित सीड-ड्रिल का उपयोग होता हैं। इसके द्वारा बीजों में समान दूरी एवं गहराई बनी रहती है। पौधों को अत्यधिक घने होने से रोकने के लिए बीजों की बीच उचित दूरी होना अत्यंत महत्वपूर्ण है। पौधों को सूर्य का प्रकाश, पोषक एवं जल पर्याप्त मात्रा में होता है।
 
3. खाद एवं उर्वरक मिलाना- वे पदार्थ जिन्हें मिट्टी में पोषक स्तर बनाए रखने के लिए मिलाया जाता हैं, उन्हें खाद एवं उर्वरक कहते हैं।

• फसलों के लगातार उगाने से मिट्टी में कुछ पोषकों की कमी हो जाती है। इस क्षति को पूरा करने हेतु किसान खेतों में खाद देते हैं। यह प्रक्रम खाद देना कहलाता है।

• खाद एक कार्बनिक (जैविक) पदार्थ है जो कि पौधों या जंतु अपशिष्ट से प्राप्त होती है।

• उर्वरक रासायनिक पदार्थ है जो विशेष पोषकों से समृद्ध होते हैं। उर्वरक का उत्पादन फैक्ट्रियों में किया जाता हैं। उदाहरण- यूरिया, अमोनियम सल्फेट, सुपर फास्फेट, पोटाश, NPK(नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम)।

• राइजोबियम वैक्टीरिया फलीदार (लैग्यूमिनस) पौधों की जड़ों की प्रंथिकाओं में पाए जाते है और वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करते हैं।

खाद के लाभ- 
  • इससे मिट्टी की जलधारण क्षमता में वृद्धि होती है।
  • इससे मिट्टी भुरभुरी एवं सरंध्र हो जाती हैं जिसके कारण गैस विनिमय सरलता से होता है।
  • इससे मित्र जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि हो जाती हैं।
  • इस जैविक खाद से मिट्टी का गठन सुधर जाता है।

4. सिंचाई- पौधे के वृद्धि एवं परिवर्धन के लिए जल का विशेष महत्व है। पौधों की जड़ों द्वारा जल का अवशोषण होता है। साथ ही खनिजों और उर्वरकों का भी अवशोषण होता हैं।

  • जल में घुले हुए पोषक का स्थानांतरण पौधे के प्रत्येक भाग में होता है। स्वस्थ फसल वृद्धि के लिए मिट्टी की नमी को बनाए रखने के लिए खेत में नियमित रूप से जल देना आवश्यक है। निश्चित अंतराल पर खेत में जल देना सिंचाई कहलाता है।
सिंचाई के स्त्रोत- कुएं, जलकूप, तालाब/झील, नदियां, बांध एवं नहर आदि। 
  • सिंचाई के पारंपरिक तरीके- 1. मोट(घिरनी), 2. चेन पम्प, 3. ढेकली, 4. रहट(उत्तोलक तंत्र)।
सिंचाई की आधुनिक विधियां-
i. छिड़काव तंत्र- इस विधि का उपयोग असमतल भूमि के लिए किया जाता है। जहां पर जल कम मात्रा में उपलब्ध है। इसका छिड़काव पौधों पर इस प्रकार होता है जैसे वर्षा हो रही हो।
  • छिड़काव लांन, कांफी की खेती एवं कई अन्य फसलों के लिए अत्यंत उपयोगी है।
ii. ड्रिप तंत्र- इस विधि में जल बूंद-बूंद करके सीधे पौधों की जड़ों में गिरता है। इसे ड्रिप तंत्र कहते हैं। फलदार पौधों, बगीचों एवं वृक्षों को पानी देने का यह सर्वोत्तम तरीका है।
  • इस विधि में जल बिल्कुल व्यर्थ नहीं होता। अतः यह जल को कमी वाले क्षेत्रों के लिए एक वरदान है।

5. खरपतवार- खेत में कई अन्य अवांछित पौधे प्राकृतिक रूप से फसल के साथ उग जाते हैं। इन अवांछित पौधों को खरपतवार कहते हैं। खरपतवार हटाने की विधि को निराई कहते हैं।
  • खरपतवार हटाने का सर्वोत्तम समय उनमें पुष्पण एवं बीज बनने से पहले का होता है। खरपतवार पौधों को हाथ से जड़ सहित उखाड़ कर, भूमि के निकट से काट कर समय-समय पर हटा दिया जाता है। यह कार्य खुरपी या हैरों की सहायता से किया जाता है।
  • रसायनों के उपयोग से भी खरपतवार नियंत्रण किया जाता है, जिन्हें खरपतवारनाशी कहते हैं। जैसे- 2, 4-D
  • खरपतवारनाशी को जल में आवश्यकतानुसार मिलाकर स्प्रेयर (फुहारा) की सहायता से खेत में छिड़काव करते हैं। इसके छिड़काव से किसान के स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ सकता हैं। छिड़काव करते समय वे अपना मुंह एवं नाक कपड़ा से ढक लेते हैं।
6. कटाई- फसल की कटाई एक महत्वपूर्ण कार्य है। फसल पक जाने के बाद उसे काटना कटाई कहलाता है।
  • हमारे देश में दरांती की सहायता से हाथ द्वारा कटाई की जाती है अथवा एक मशीन का उपयोग किया जाता है जिसे हार्वेस्टर कहते हैं।
  • थ्रेशिंग- काटी गई फसल से बीजों/दानों को भूसे से अलग करना होता है। इसे थ्रेशिंग कहते हैं।
  • छोटे खेत वाले अनाज के दानों को फटक कर अलग करते हैं।

7. भण्डारण- उत्पाद का भण्डारण एक महत्वपूर्ण कार्य है। यदि फसल के दानों को अधिक समय तक रखना हो तो उन्हें नमी, कीट, चूहों एवं सूक्ष्मजीवों से सुरक्षित रखना होगा।
  • किसान अपनी फसल उत्पाद का भण्डारण जूट के बोरों, धातु के बड़े पात्र में करते हैं। बीजों का बड़े पैमाने पर भण्डारण साइलों और भण्डार गृहों में किया जाता है। जिससे उनको पीडको जैसे- चूहों एवं कीटों से सुरक्षित रखा जा सके।
  • नीम की सूखी पत्तियां घरों में अनाज के भण्डारण में उपयोग की जाती है। बड़े भण्डार गृहों में अनाज को पीडकों एवं सूक्ष्मजीवों से सुरक्षित रखने के लिए रासायनिक उपचार भी किया जाता है।

पशुपालन- घरों में अथवा फार्म पर पालने वाले पालतू पशुओं को उचित भोजन, आवास एवं देखभाल की आवश्यकता होती है। जब यह बड़े पैमाने पर किया जाता है तो इसे पशुपालन कहते हैं।

मछली स्वास्थ्य के लिए अच्छा आहार है। मछली से काॅड लीवर तेल मिलता है जिसमें विटामिन-D अधिक मात्रा में पाया जाता है।