CLASS-9 SCIENCE

 

CHAPTER-5 जीवन की मौलिक इकाई

NOTES


1. सन् 1665 में राबर्ट हुक ने कोशिका की खोज की।

  • ल्यूवेनहांक (1674) ने सबसे पहले उन्नत सूक्ष्मदर्शी से तालाब के जल में स्वतंत्र रूप से जीवित कोशिकाओं का पता लगाया।
  • राबर्ट ब्राउन ने 1831 में कोशिका में केंद्रक का पता लगाया।
  • जे. ई. पुरोकंज ने 1839 में कोशिका में स्थित तरल जैविक पदार्थ को जीवद्रव्य का नाम दिया।
  • दो जीव वैज्ञानिक एम स्लीडन (1838) तथा टी. स्वान (1839) ने कोशिका सिद्धांत के बारे में बताया। इस सिद्धांत के अनुसार सभी पौधे तथा जंतु कोशिकाओं से बने हैं और वे जीवन की मूलभूत इकाई है। विरचो (1835) ने कोशिका सिद्धांत को और आगे बढ़ाया। उन्होंने बताया सभी कोशिकाएं पूर्ववर्ती कोशिकाओं से बनती है।
  • 1940 में इलेक्ट्रान सूक्ष्मदर्शी की खोज के बाद कोशिका की जटिल संरचना तथा बहुत से अंगकों को समझना संभव हो सका।

A. एक कोशिक जीव- एकमात्र कोशिका के बने संपूर्ण जीव को एक कोशिक जीव कहते हैं। जैसे- अमीबा, क्लैमिडोमोनास, पैरामीशियम तथा बैक्टीरिया आदि।

B. बहु कोशिक जीव- बहु कोशिक जीव ने अनेक कोशिकाएं समाहित होकर विभिन्न कार्यों को सम्पन्न करने हेतु विभिन्न अंगों का निर्माण करती है। उदाहरण- फंजाई (काक), पादप तथा जंतु।


2. कोशिका- कोशिकाओं की आकृति तथा आकार उनके विशिष्ट कार्यों के अनुरूप होते हैं। कुछ कोशिकाएं अपना आकार बदलती रहती हैं। जैसे- अमीबा। कुछ जीवों में कोशिका का आकार स्थिर रहता है जैसे- तंत्रिका कोशिका।

प्रत्येक जीवित कोशिका में कुछ मूलभूत कार्य करने की क्षमता होती है, जो सभी सजीवों का गुण है।

  • बहुकोशिक जीवों में श्रम विभाजन होता है, शरीर के विभिन्न अंग विभिन्न कार्य करते हैं। जैसे हृदय रुधिर को पम्प करता है। अमाशय भोजन का पाचन आदि। एक कोशिक में भी श्रम विभाजन होता है। ऐसी प्रत्येक कोशिका में कुछ विशिष्ट घटक होते हैं, जिन्हें कोशिकांग कहते हैं।
  • कोशिकांगो के कारण एक कोशिका जीवित रहती है और अपने सभी कार्य करती है। ये कोशिकांग मिलकर एक मूलभूत इकाई बनाते हैं जिसे कोशिका कहते हैं।

3. कोशिका का संरचनात्मक संगठन- प्रत्येक कोशिकाओं में तीन गुण दिखाई देंगे- प्लाज्मा झिल्ली, केंद्रक तथा कोशिकाद्रव्य। कोशिका के अंदर होने वाले समस्त क्रियाकलाप तथा उसकी बाह्य पर्यावरण से पारस्परिक क्रियाएं इन्हीं गुणों के कारण संभव है।

i) प्लाज्मा झिल्ली/कोशिका झिल्ली- यह कोशिका की सबसे बाहरी परत है जो कोशिका के घटकों को बाहरी पर्यावरण से अलग करती है। प्लाज्मा झिल्ली कुछ पदार्थों को अंदर तथा बाहर आने-जाने देती है। यह अन्य पदार्थों की गति को भी रोकती है। कोशिका झिल्ली को इसलिए वर्णनात्मक पारगम्य झिल्ली कहते हैं।

  • कुछ पदार्थ जैसे कार्बन डाइऑक्साइड अथवा आक्सीजन कोशिका झिल्ली के आर-पार विसरण प्रक्रिया द्वारा आ-जा सकते हैं।

A. विसरण- जिस प्रक्रिया में पदार्थों का आवागमन अधिक सांद्रता से कम सांद्रता वाले माध्यम की ओर होता हैं, विसरण कहलाता है। गैसों के आदान-प्रदान में विसरण एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

B. परासरण- जल के अणुओं की गति जब विभेदक वर्णनात्मक पारगम्य झिल्ली द्वारा हो तो उसे परासरण कहते हैं। प्लाज्मा झिल्ली से जल की गति जल में घुले पदार्थों की मात्रा के कारण भी प्रभावित होती है।

परासरण के प्रकार- 1. अल्पपरासरण, 2. सम-परासरण, 3. अति-परासरण।

1. अल्पपरासरण- यदि कोशिका को तनु विलयन वाले माध्यम में रखा गया है तो जल परासरण विधि द्वारा कोशिका के अंदर चला जाएगा। ऐसे विलयन को अल्पपरासरण दाबी विलयन कहते हैं।

2. सम-परासरण- यदि कोशिका को ऐसे माध्यम विलयन में रखा जाए जिसमें बाह्य जल की सांद्रता कोशिका में स्थित जल की सांद्रता के ठीक बराबर हो तो कोशिका झिल्ली से जल में कोई शुद्ध गति नहीं होगी। ऐसे विलयन को सम-परासरण विलयन कहते हैं।

3. अति-परासरण- यदि कोशिका के बाहर वाला विलयन अंदर के घोल से अधिक सांद्र है तो जल परासरण द्वारा कोशिका से बाहर आ जाएगा। ऐसे विलयन को अति-परासरण दाबी विलयन कहते हैं।

  • एककोशीकीय अलवणीय जलीय जीवों तथा अधिकांश पादप कोशिकाएं परासरण द्वारा जल ग्रहण करते हैं।
  • पौधों के मूल द्वारा जल का अवशोषण परासरण का एक उदाहरण है।
  • प्लाज्मा झिल्ली लचीली होती है और कार्बनिक अणुओं जैसे लिपिड तथा प्रोटीन की बनी होती है।

C. एन्डोसाइटोसिस- कोशिका झिल्ली का लचीलापन एककोशिक जीवों में कोशिका के बाह्य पर्यावरण से अपना भोजन तथा अन्य पदार्थ ग्रहण करने में सहायता करता है। ऐसी प्रक्रिया को एन्डोसाइटोसिस कहते हैं। अमीबा अपना भोजन इसी प्रक्रिया द्वारा प्राप्त करता है।

ii) कोशिका भित्ति- पादप कोशिकाओं में प्लाज्मा झिल्ली के अतिरिक्त कोशिका भित्ति भी होती है। पादप कोशिका भित्ति सेल्यूलोज की बनी होती हैं यह पौधों को संरचनात्मक दृढ़ता प्रदान करती है।

  • कोशिका भित्ति पौधों, कवक तथा बैक्टीरिया की कोशिकाओं को अपेक्षाकृत कम तनु विलयन में बिना फटे बनाए रखती है।
  • कोशिका भित्ति के कारण पादप कोशिकाएं परिवर्तनिय माध्यम को जंतु कोशिका की अपेक्षा आसानी से सहन कर सकती हैं।

iii) केंद्रक- केंद्रक के चारों ओर दोहरे परत का एक स्तर होता है जिसे केंद्रक झिल्ली कहते हैं। केंद्रक झिल्ली में छोटे-छोटे छिद्र होते हैं। इन छिद्रों के द्वारा केंद्रक के अंदर का कोशिकाद्रव्य केंद्रक के बाहर जा पाता है।

  • केंद्रक में क्रोमोसोम होते हैं जो कोशिका विभाजन के समय छड़ाकार दिखाई पड़ते है। क्रोमोसोम में अनुवांशिक गुणों की जो सूचना होती है वो माता-पिता से DNA अणु के रूप में अगली संतति में जाते हैं। क्रोमोसोम DNA तथा प्रोटीन के बने होते हैं। DNA अणु में कोशिका के निर्माण व संगठन की सभी आवश्यक सूचनाएं होती है। DNA के क्रियात्मक खंड को जीन कहते हैं।
  • जो कोशिका विभाजित नहीं हो रही होती है उसमें यह DNA क्रोमैटिन पदार्थ के रूप में विद्यमान रहता है। क्रौमैटिन पदार्थ धागे की तरह की रचनओं के एक जाल का पिंड होता है।
  • कुछ जीवों में कोशिकिय जनन में केंद्रक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस प्रक्रिया में एक अकेली कोशिका विभाजित होकर दो नयी कोशिकाएं बनाती है।

प्रोकैरियोट जीव- ऐसे जीव जिसकी कोशिकाओं में केंद्रक झिल्ली नहीं होती उन्हें प्रोकैरियोट कहते हैं।

यूकैरियोट जीव- जिन जीवों की कोशिकाओं में केंद्रक झिल्ली होती है उन्हें यूकैरियोट कहते हैं।

  • प्रोकैरियोटी कोशिकाओं में और भी अन्य अधिकांश द्रव्य अंगक नहीं होते हैं जो कि यूकैरियोटी कोशिकाओं में होते हैं।
  • प्रकाश संश्लेषी बैक्टीरिया में क्लोरोफिल झिल्लीदार पुटिका के साथ होता है जबकि यूकैरियोटी कोशिकाओं में क्लोरोफिल प्लैस्टिड में होता है।

iv) कोशिका द्रव्य- कोशिका द्रव्य, कोशिका झिल्ली से घिरा होता है। इसमें बहुत से विशिष्ट कोशिका के घटक है जिन्हें कोशिका अंगक कहते हैं।

  • कोशिका द्रव्य तथा केंद्रक दोनों को मिलाकर जीवद्रव्य कहते हैं।
  • कोशिका अंगक झिल्ली युक्त होते हैं।

v. कोशिका अंगक-


A. अंतर्द्रव्यी जालिका (ER)- अंतर्द्रव्यी जालिका झिल्ली युक्त नलिकाओं तथा शीट का एक बहुत बड़ा तंत्र है।

• अंतर्द्रव्यी जालिका की रचना भी प्लाज्मा झिल्ली के समरूप होती है। यह दो प्रकार की होती है- 1. खुरदुरी अंतर्द्रव्यी जालिका (RER), 2. चिकनी अंतर्द्रव्यी जालिका (SER)

1. खुरदुरी अंतर्द्रव्यी जालिका- राइबोसोम उपस्थित होते हैं।

2. चिकनी अंतर्द्रव्यी जालिका- राइबोसोम अनुपस्थित होते हैं।

  • राइबोसोम पर प्रोटीन संश्लेषित होती है। RER तैयार प्रोटीन को आवश्यकतानुसार ER के द्वारा कोशिका के अन्य भागों में भेज देता है।
  • SER वसा अथवा लिपिड अणुओं के बनाने में सहायता करती है। यह कोशिकीय क्रिया के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
  • कुछ प्रोटीन तथा वसा कोशिका झिल्ली को बनाने में सहायता करते हैं। इस प्रक्रिया को झिल्ली जीवात् जनन कहते हैं। ER सदैव एक जालिका तंत्र का निर्माण करती हैं।
  • कशेरुकी जंतुओं के यकृत की कोशिकाओं में SER विष तथा दवा को निराविषीकरण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

B. गाल्जी उपकरण- कैमिलो गाल्जी द्वारा वर्णित गाल्जी उपकरण झिल्ली युक्त चपटी पुटिकाओं का एक तंत्र है जो एक-दूसरे के ऊपर समानांतर रूप से सजी रहती है जिन्हें कुंडिका कहते हैं।

  • इन झिल्लियों का संपर्क ER झिल्लियों से होता है और इसलिए जटिल कोशिकीय झिल्ली तंत्र के दूसरे भाग को बनाती है।
  • ER में संश्लेषित पदार्थ गाल्जी उपकरण में पैक किए जाते हैं ओर उन्हें कोशिका के बाहर तथा अंदर विभिन्न क्षेत्रों में भेज दिया जाता है।
  • गाल्जी उपकरण के द्वारा लाइसोसोम को भी बनाया जाता है।

C. लाइसोसोम- यह झिल्ली से घिरी हुई संरचना होती है। जिनमें पाचक एंजाइम होते हैं। RER इन एंजाइमों को बनाते हैं। लाइसोसोम कोशिका का अपशिष्ट निपटाने वाला तंत्र है।

  • लाइसोसोम में बहुत शक्तिशाली पाचनकारी एंजाइम होते हैं जो जटिल पदार्थों को सरल पदार्थों में तोड़ते हैं। इन्हें आत्मघाती थैली भी कहा जाता हैं।

D. माइटोकॉन्ड्रिया- माइटोकॉन्ड्रिया कोशिका का बिजलीघर है। यह दोहरी झिल्ली की बनी होती हैं। बाहरी झिल्ली छिद्रित होती है। भीतरी झिल्ली बहुत अधिक वलित होती है। ये वलय ATP बनाने वाली रासायनिक क्रियाओं के क्षेत्र को बड़ा बनाती है।

  • माइटोकॉन्ड्रिया ATP के रूप में ऊर्जा प्रदान करते हैं।
  • शरीर नए रासायनिक यौगिकों को बनाने तथा यांत्रिक कार्य के लिए ATP में संचित ऊर्जा का उपयोग करता है।
  • माइटोकॉन्ड्रिया में अपना DNA तथा राइबोसोम होता है। अतः यह अपना कुछ प्रोटीन स्वयं बनाते हैं।

E. प्लैस्टिड- प्लैस्टिड केवल पादप कोशिकाओं में स्थित होते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं- क्रोमोप्लास्ट तथा ल्यूकोप्लास्ट

I. क्रोमोप्लास्ट (रंगीन प्लैस्टिड)- जिस क्रोमोप्लास्ट में क्लोरोफिल वर्णक होता है उसे क्लोरोप्लास्ट कहते हैं। यह पौधों को प्रकाश संश्लेषण के लिए बहुत आवश्यक है।

II. ल्यूकोप्लास्ट (श्वेत तथा रंगहीन प्लैस्टिड)- ल्यूकोप्लास्ट प्राथमिक रूप से अंगक है जिसमें स्टार्च, तेल तथा प्रोटीन जैसे पदार्थ संचित होते हैं।

  • क्लोरोप्लास्ट की भीतरी रचना में बहुत सी झिल्ली वाली परतें होती है जो स्ट्रोमा में स्थित होती है।
  • माइटोकॉन्ड्रिया की तरह प्लैस्टिड में भी अपना DNA तथा राइबोसोम होते हैं।

F. रसधानियां- रसधानियां ठोस अथवा तरल पदार्थों की संग्राहक थैलियां है। जंतु कोशिकाओं में रसधानियां छोटी होती हैं जबकि पादप कोशिकाओं में रसधानियां बहुत बड़ी होती है।

  • कुछ पौधों की कोशिकाओं का केंद्रीय रसधानी की माप कोशिका के आयतन का 50% से 90% तक होता है।
  • पादप कोशिकाओं की रसधानियों में कोशिका द्रव्य भरा रहता है और ये कोशिकाओं को स्फीति तथा कठोरता प्रदान करती है।
  • पौधों के लिए आवश्यक बहुत से पदार्थ रसधानी में स्थित होते हैं। ये अमीनों अम्ल, शर्करा, विभिन्न कार्बनिक अम्ल तथा कुछ प्रोटीन है।
  • कुछ एककोशिक जीवों में विशिष्ट रसधानियां अतिरिक्त जल तथा कुछ अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाती है।

4. कोशिका विभाजन- जीवधारियों में वृद्धि हेतु नई कोशिकाएं बनाती है जिससे पुरानी मृत एवं क्षतिग्रस्त कोशिकाओं का प्रतिस्थापन और प्रजनन हेतु युग्मक बनते हैं।

  • नई कोशिकाओं के बनने की प्रक्रिया को कोशिका विभाजन कहते हैं। यह दो प्रकार की होती हैं- 1. सूत्री विभाजन, 2. अर्ध सूत्री विभाजन

1. सूत्री विभाजन- कोशिका विभाजन की प्रक्रिया, जिससे अधिकतर कोशिकाएं वृद्धि हेतु विभाजित होती है, उसे सूत्री विभाजन कहते हैं। इस प्रक्रिया में प्रत्येक कोशिका जिसे मातृ कोशिका भी कह सकते हैं, विभाजित होकर दो समरूप संतति कोशिकाएं बनाती है। इनमें गुणसूत्रों की संख्या मातृ कोशिका के समान होती है। यह जीवों में वृद्धि एवं ऊतकों के मरम्मत में सहायता करती हैं।


2. अर्ध सूत्री विभाजन- जंतुओं और पौधों के प्रजनन अंगों अथवा ऊतकों की विशेष कोशिकाएं विभाजित होकर युग्मक बनाती है जो निषेचन के पश्चात् संतति निर्माण करती है।

  • अर्ध सूत्री विभाजन में क्रमशः दो विभाजन होते हैं। इस विभाजन में 4 नई कोशिकाएं बनती हैं। नई कोशिकाओं में मातृ कोशिकाओं की तुलना में गुणसूत्रों की संख्या आधी होती हैं।