CHAPTER- 1 क्या, कब कहां और कैसे?
NOTES
1. कई लाख वर्ष पहले से लोग नर्मदा नदी के तट पर रह रहे हैं। आरंभिक लोगों में से कुछ कुशल संग्राहक थे जो आस-पास के जंगलों की विशाल संपदा से परिचित थे।
2. लगभग आठ हजार वर्ष पूर्व स्त्री-पुरुषो ने सबसे पहले गेहूं तथा जौ जैसी फसलों का उपजाना आरंभ किया। उन्होंने भेड़, बकरी और गाय-बैल जैसे पशुओं को पालतू बनाना शुरू किया। ये लोग गांव में रहते थे।
- कुछ क्षेत्रों में कृषि का विकास हुआ जहां सबसे पहले चावल उपजाया गया वे स्थान विंध्य के उत्तर में स्थित थे।
3. सहायक नदियां- सहायक नदियां उन्हें कहते हैं जो एक बड़ी नदी में मिल जाती हैं।
4. लगभग 4700 वर्ष पूर्व इन्हीं नदियों के किनारे कुछ आरंभिक नगर फले-फूले। गंगा व इसकी सहायक नदियों के किनारे तथा समुद्र तटवर्ती इलाकों में नगरों का विकास लगभग 2500 वर्ष पूर्व हुआ।
5. गंगा के दक्षिण के आस-पास का क्षेत्र प्राचीन काल में मगध नाम से जाना जाता था। इसके शासक बहुत शक्तिशाली थे, उन्होंने विशाल राज्य स्थापित किया।
6. लोग सदैव एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक यात्रा करते। कभी लोग काम की तलाश में तो कभी प्राकृतिक आपदाओं के कारण एक स्थान से दूसरे स्थान जाया करते थे।
- कभी सेना दूसरे क्षेत्रों पर विजय हासिल करने के लिए जाती।
- धार्मिक गुरू लोगों को शिक्षा और सलाह देते हुए एक गांव से दूसरे गांव तथा एक कस्बे से दूसरे कस्बे जाया करते थे।
- इन सभी यात्राओं से लोगों को एक-दूसरे के विचारों को जानने का अवसर मिला।
8. कई सौ वर्षों से लोग पत्थर को तराशने, संगीत रचने और यहां तक कि भोजन बनाने के नए तरीकों के बारे में एक-दूसरे के विचारों को अपनाते रहे हैं।
9. अपने देश के लिए हम इण्डिया तथा भारत जैसे नामों का प्रयोग करते हैं। इण्डिया शब्द इण्डस से निकला है जिसे संस्कृत में सिंधु कहा जाता है।
- लगभग 2500 वर्ष पूर्व उत्तर-पश्चिम की ओर से आने वाले ईरानियों और यूनानियों ने सिंधु को हिंदोस अथवा इंदोस और इस नदी के पूर्व में स्थित भूमि प्रदेश को इण्डिया कहा।
- भारत नाम का प्रयोग उत्तर-पश्चिम में रहने वाले लोगों के एक समूह के लिए किया जाता था। इस समूह का उल्लेख संस्कृत की आरंभिक कृति ऋग्वेद में भी मिलता है।
10. अतीत के बारे में कैसे जाने- अतीत की जानकारी कई तरह से प्राप्त कर सकते हैं। एक तरीका पुस्तकों को ढूंढना और पढ़ना है। ये पुस्तकें हाथ से लिखी होने के कारण पाण्डुलिपि कही जाती है। पाण्डुलिपि ताडपत्र अथवा भूर्ज नामक पेड़ की छाल से तैयार भोजपत्र पर लिखी मिलती है।
- इन पुस्तकों में धार्मिक मान्यता व व्यवहार, राजाओं के जीवन, औषधियों तथा विज्ञान आदि की चर्चा मिलती है।
- अभिलेखों का भी अध्ययन कर सकते हैं। ये लेख पत्थर अथवा धातु जैसी कठोर सतहों पर उत्कीर्ण किए गए मिलते हैं। इनमें शासक लड़ाइयों में अर्जित विजयों का लेखा-जोखा रखा करते थे।
- ऐसी वस्तुओं का अध्ययन करने वाला व्यक्ति पुरातत्वविद् कहलाता है। पुरातत्वविद् जानवरों, चिड़ियों तथा मछलियों की हड्डीयां भी ढूंढते हैं।
- इतिहासकार- जो अतीत का अध्ययन करते हैं।
11. अलग-अलग समूह के लोगों के लिए अतीत के अलग-अलग मायने हैं।
12. वर्ष की गणना ईसाई धर्म-प्रवर्तक ईसा मसीह के जन्म की तिथि से की जाती है। ईसा मसीह के जन्म के पूर्व की तिथियां ई.पू. के रूप में जानी जाती हैं।
- अंग्रेजी में बी.सी. (बिफोर क्राइस्ट) ई.पू. (ईसा पूर्व)।
- अंग्रेजी बी.पी. (बिफोर प्रेजेन्ट) या वर्तमान से पहले।
13. समय के साथ-साथ अभिलेखों में प्रयुक्त भाषाओं तथा लिपियों में बहुत बदलाव आ चुका हैं। इसका पता अज्ञात लिपि का अर्थ निकालने की एक प्रक्रिया द्वारा लगाया जा सकता है।