CHAPTER- 1 समानता
NOTES
1. भारतीय लोकतंत्र में समानता- भारतीय संविधान सब व्यक्तियों को समान मानता हैं।
- इसका अर्थ है कि देश के व्यक्ति चाहे वे पुरुष हों या स्त्री, किसी भी जाति, धर्म, शैक्षिक और आर्थिक पृष्ठभूमि से संबंध रखते हों वे सब समान माने जाएंगे।
2. समानता को स्थापित करने के लिए संविधान में प्रावधान-
- प्रथम- कानून की दृष्टि में हर व्यक्ति समान है। इसका तात्पर्य है कि हर व्यक्ति को देश के राष्ट्रपति से लेकर एक सामान्य नागरिक तक सभी को एक ही जैसे कानून का पालन करना हैं।
- दूसरा- किसी भी व्यक्ति के साथ उसके धर्म, जाति, वंश, जन्मस्थान और उसके स्त्री या पुरुष होने के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता।
- तीसरा- हर व्यक्ति सार्वजनिक स्थानों पर जा सकता है।
- चौथा- अस्पृश्यता का उन्मूलन कर दिया गया हैं।
3. समानता के अधिकार दो तरह से लागू हैं- पहला कानून के द्वारा और दूसरा सरकार की योजनाओं व कार्यक्रमों द्वारा सुविधाहीन समाजों की मदद करके।
4. समानता कि दिशा में सरकार द्वारा उठाया गया कदम- मध्याह्न भोजन की व्यवस्था। इस कार्यक्रम के अंतर्गत सभी सरकारी प्राथमिक स्कूलों के बच्चों को दोपहर का भोजन स्कूल द्वारा दिया जाता है।
कार्यक्रम के सकारात्मक प्रभाव-
- इस कार्यक्रम से जातिगत पूर्वाग्रहों को कम करने में भी सहायता मिलती है।
- मध्याह्न भोजन कार्यक्रम ने निर्धन विद्यार्थियों की भूख मिटाने में भी सहायता की है, जो प्रायः खाली पेट स्कूल आते हैं और इस कारण पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं।
- कानून बन जाने के बाद भी लोग उन्हें समान समझने से इंकार कर देते हैं।
- लोग यह जानते हैं कि भेदभाव का व्यवहार कानून के विरूद्ध है, फिर भी वे जाति, धर्म, अपंगता, आर्थिक स्थिति और महिला होने के आधार पर लोगों से असमानता का व्यवहार करते हैं।
5. अन्य लोकतंत्र में समानता के मुद्दे- समानता के मुद्दे पर विशेष रूप से संघर्ष अन्य देशों में भी हो रहें हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका- यहां अफ्रीकी-अमेरिकन लोग, जिनके पूर्वज गुलाम थे और अफ्रीका से लाए गए थे, वे आज भी अपने जीवन को मुख्य रूप से असमान बताते हैं। पहले अफ्रीकी-अमेरिकनों के साथ संयुक्त राज्य में बहुत असमानता का व्यवहार होता था और कानून भी उन्हें समान नहीं मानता था।
- अफ्रीकी-अमेरिकनों के साथ असमानता को लेकर एक विशाल आंदोलन प्रारंभ हो गया, जो नागरिक अधिकार आंदोलन (सिविल राइट्स मूवमेंट) कहलाया।
- 1964 के नागरिक अधिकार अधिनियम ने नस्ल, धर्म और राष्ट्रीय मूल के आधार पर भेदभाव का निषेध कर दिया।
6. लोकतंत्र की चुनौती- किसी भी देश को पूरी तरह से लोकतंत्रीय नहीं कहा जा सकता।
- कुछ व्यक्ति और समुदाय ऐसे होते हैं जो लोकतंत्र को नए अर्थ देते हैं और अधिक से अधिक समानता लाने के लिए नए-नए सवाल उठाते हैं।
- सब व्यक्तियों की समानता और उनके आत्मसम्मान को ऊंचा रखने की भावना को लोग स्वीकार कर रहे हैं या नहीं।