CHAPTER- 1 भारतीय संविधान
NOTES
1. संविधान- बड़े समाजों में कई अलग-अलग समुदाय एक साथ रहते हैं। वहां नियमों को आम सहमति के जरिए तय किया जाता है आधुनिक देशों में यह सहमति आमतौर पर लिखित रूप में पाई जाती है। जिस दस्तावेज में हमें ऐसे नियम मिलते हैं उसे संविधान कहा जाता हैं।
2. 1937 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने संविधान सभा के गठन की मांग को पहली बार अपनी अधिकृत नीति में शामिल किया।
- दिसंबर 1946 में संविधान सभा का गठन किया गया।
- दिसंबर 1946 से नवंबर 1949 के बीच संविधान सभा ने स्वतंत्र भारत के लिए नए संविधान का एक प्रारूप तैयार किया।
3. संविधान कई उद्देश्यों की पूर्ति करता है-
- पहला- यह दस्तावेज उन आदर्शों को सूत्रबद्ध करता है जिनके आधार पर नागरिक अपने देश को अपनी इच्छा और सपनों के अनुसार रच सकते हैं। यानि संविधान ही बताता है कि हमारे समाज का मूलभूत स्वरूप हैं।
- दूसरा- देश की राजनीतिक व्यवस्था को तय करना।
4. लोकतंत्र- लोकतंत्र में हम अपने नेता खुद चुनते हैं ताकि हमारे चारों ओर से वे सत्ता का जिम्मेदारी से इस्तेमाल कर सकें।
- इस बात की संभावना हमेशा बनी रहती है कि ये नेता सत्ता का दुरूपयोग करते हैं।
- लोकतांत्रिक समाजों में प्रायः संविधान ही ऐसे नियम तय करता है जिनके द्वारा राजनेताओं के हाथों सत्ता के इस दुरूपयोग को रोका जा सकता हैं।
- लोकतंत्र में संविधान का एक महत्वपूर्ण काम यह होता है कि कोई भी ताकतवर समूह किसी दूसरे या कम ताकतवर समूह या लोगों के खिलाफ अपनी ताकत का इस्तेमाल न करें।
5. अंतर-सामुदायिक वर्चस्व- अल्पसंख्यकों पर बहुसंख्यकों की निरंकुशता या दबदबे पर प्रतिबंध लगाना संविधान का महत्वपूर्ण कार्य है। यह दबदबा एक समुदाय द्वारा दूसरे समुदाय के ऊपर भी हो सकता है जिसे अंतर-सामुदायिक वर्चस्व कहते हैं।
अंतः सामुदायिक वर्चस्व- एक ही समुदाय के भीतर कुछ लोग दूसरों को दबा सकते हैं, जिसे अंतः सामुदायिक वर्चस्व कहते हैं।
6. संविधान ऐसे फैसले लेने से भी रोकता है जिनसे उन बड़े सिद्धांतों को ठेस पहुंच सकती है जिनमें देश आस्था रखता हैं।
7. भारतीय संविधान: मुख्य लक्षण-
- बीसवीं सदी तक आते-आते भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन कई दशक पुराना हो चुका था। स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान राष्ट्रवादियों ने इस बात पर काफी विचार किया था कि स्वतंत्र भारत किस तरह का होना चाहिए।
- औपनिवेशिक राज्य के लंबे अत्याचारी शासन ने भारतीयों के सामने इतना जरूर स्पष्ट कर दिया था कि स्वतंत्र भारत को एक लोकतांत्रिक देश होना चाहिए।
- संविधान सभा के सदस्यों के सामने एक जिम्मेदारी थी। हमारे देश में कई समुदाय थे। उनकी न तो भाषा एक थी, न एक धर्म और न ही एक जैसी संस्कृति थी।
8. संघवाद- इसका मतलब यह है देश में एक से ज्यादा स्तर की सरकार का होना। हमारे देश में राज्य स्तर भी सरकारें हैं और केंद्र स्तर पर भी।
- भारत के सभी राज्यों को कुछ मुद्दों पर फैसले लेने का स्वायत्त अधिकार हैं।
- राष्ट्रीय महत्त्व के सवालों पर सभी राज्यों को केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों को मानना पड़ता है।
- कार्यक्षेत्र की स्पष्टता के लिए संविधान में कुछ सूचियां दी गई है जिनमें बताया गया है कि कौन से स्तर की सरकार किन मुद्दों पर कानून बना सकती हैं।
- भारत के सभी लोग इन सभी स्तरों की सरकारों द्वारा बनाए गए कानूनों और नीतियों के अंतर्गत आते हैं।
9. संसदीय शासन पद्धति- सरकार के सभी स्तरों पर प्रतिनिधियों का चुनाव लोग खुद करते हैं।
- भारत का संविधान अपने सभी व्यस्क नागरिकों को वोट डालने का अधिकार देता है।
- व्यस्क मताधिकार से न केवल लोकतांत्रिक सोच व तौर-तरीकों को प्रोत्साहन मिलेगा, बल्कि जाति, वर्ग और औरत-मर्द के फर्क पर आधारित ऊंच-नीच की बेड़ियों को भी तोड़ा जा सकता है।
- सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार का मतलब है कि अपने प्रतिनिधियों के चुनाव में देश के सभी लोगों की सीधी भूमिका होती हैं।
10. शक्तियों का बंटवारा- संविधान के अनुसार सरकार के तीन अंग है- विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका।
- विधायिका में हमारे निर्वाचित प्रतिनिधि होते हैं।
- कार्यपालिका ऐसे लोगों का समूह है जो कानूनों को लागू करने और शासन चलाने का काम देखते हैं।
- न्यायलयों की व्यवस्था को न्यायपालिका कहा जाता है।
- शक्तियों के इस बंटवारे के आधार पर प्रत्येक अंग दूसरे अंग पर अंकुश रखता है और इस तरह तीनों अंगों के बीच सत्ता का संतुलन बना रहता है।
11. मौलिक अधिकार- मौलिक अधिकारों वाला खंड भारतीय संविधान की अंतरात्मा भी कहलाता हैं।
- मौलिक अधिकार देश के सभी नागरिकों को राज्य सत्ता के मनमाने और निरंकुश इस्तेमाल से बचाते हैं। इस तरह संविधान राज्य और अन्य व्यक्तियों के समक्ष व्यक्तियों के अधिकारियों की रक्षा करता हैं।
- मौलिक अधिकारों के बारे में डाॅ. अम्बेडकर ने कहा था कि इनका दोहरा उद्देश्य है- पहला, हरेक नागरिक ऐसी स्थिति में हों कि वह उन अधिकारों के लिए दावेदारी कर सके। दूसरी, ये अधिकार हर उस सत्ता और संस्था के लिए बाध्यकारी हों जिसे कानून बनाने का अधिकार दिया गया हैं।
- मौलिक अधिकार- 1. समानता का अधिकार, 2. स्वतंत्रता का अधिकार, 3. शोषण के विरुद्ध अधिकार, 4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, 5. सांस्कृतिक और शैक्षणिक अधिकार, 6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार।
12. धर्मनिरपेक्षता- धर्मनिरपेक्ष राज्य वह होता है जिसमें राज्य अधिकृत रूप से किसी भी धर्म को राजकीय धर्म के रूप में बढ़ावा नहीं देता।