CLASS- 9 S.S.T (अर्थशास्त्र)

 

CHAPTER- 1 पालमपुर गांव की कहानी

NOTES

1. पालमपुर में खेती मुख्य क्रिया है, जबकि अन्य कई क्रियाएं जैसे लघु-स्तरीय विनिर्माण, डेयरी, परिवहन आदि सीमित स्तर पर की जाती हैं।
  • गांव में विभिन्न जातियों के लगभग 450 परिवार हैं।
2. गैर कृषि क्रियाएं- भारत के गांवों में खेती उत्पादन की प्रमुख गतिविधि हैं। अन्य उत्पादन गतिविधियों में, जिन्हें गैर कृषि क्रियाएं कहा गया है, लघु विनिर्माण, परिवहन, दुकानदारी आदि शामिल हैं।

3. उत्पादन का संगठन- उत्पादन का उद्देश्य ऐसी वस्तुएं और सेवाएं उत्पादित करना है, जिनकी हमें आवश्यकता हैं। वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के लिए चार चीजें आवश्यक हैं।
  • पहली आवश्यकता है भूमि तथा अन्य प्राकृतिक संसाधन, जैसे- जल, वन, खनिज।
  • दूसरी आवश्यकता है श्रम अर्थात् जो लोग काम करेंगे।
  • तीसरी आवश्यकता भौतिक पूंजी है, अर्थात् उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर अपेक्षित कई तरह के आगत।
4. स्थायी पूंजी- औजारों, मशीनों और भवनों का उत्पादन में कई वर्षों तक प्रयोग होता है और इन्हें स्थायी पूंजी कहा जाता।

5. कार्यशील पूंजी- उत्पादन के दौरान भुगतान करने तथा जरूरी माल खरीदने के लिए कुछ पैसों की भी आवश्यकता होती है। कच्चा माल तथा नकद पैसों को कार्यशील पूंजी कहते हैं।

6. मानव पूंजी- उत्पादन करने के लिए भूमि, श्रम और भौतिक पूंजी को एक साथ करने योग्य बनाने के लिए ज्ञान और उद्यम की आवश्यकता पड़ती है, इसे मानव पूंजी कहा जाता है।

7. उत्पादन के कारक- उत्पादन भूमि, श्रम और पूंजी को संयोजित करके संगठित होता है, जिन्हें उत्पादन के कारक कहा जाता है।


8. पालमपुर में खेती- 

A) भूमि स्थिर है- पालमपुर में खेती उत्पादन की प्रमुख क्रिया है। 75 प्रतिशत लोग अपनी जीविका के लिए खेती पर निर्भर हैं। पालमपुर में वर्ष 1960 से आज तक जुताई के अंतर्गत भूमि-क्षेत्र में कोई विस्तार नहीं हुआ।

  • उस समय तक गांव की कुछ बंजर भूमि को कृषि योग्य भूमि में बदल दिया गया था।
Note- भूमि मापने की मानक इकाई हेक्टेयर है। एक हेक्टेयर, 100 मीटर की भुजा वाले वर्ग के क्षेत्रफल के बराबर होता हैं।

B) भूमि से अधिक पैदावार करने का कोई तरीका- पालमपुर में समस्त भूमि पर खेती की जाती है। कोई भूमि बेकार नहीं छोड़ी जाती।
  • बरसात के मौसम (खरीफ) में किसान ज्वार और बाजरा उगाते हैं। 
  • अक्टूबर और दिसंबर के बीच आलू की खेती होती है। 
  • सर्दी के मौसम (रबी) में खेती मे गेहूं उगाया जाता है। 
  • 1970 के दशक के मध्य तक 200 हेक्टेयर के पूरे जुते हुए क्षेत्र की सिंचाई होने लगी।
  • बहुविध फसल प्रणाली- एक वर्ष में किसी भूमि पर एक से ज्यादा फसल पैदा करने को बहुविध फसल प्रणाली कहते हैं।
  • 1960 के दशक के मध्य तक खेती में पारंपरिक बीजों का प्रयोग किया जाता था, जिनकी उपज अपेक्षाकृत कम थी।
  • 1960 के दशक के अंत में हरित क्रांति ने भारतीय किसानों को अधिक उपज वाले बीजों (एच. वाई. वी.) के द्वारा गेहूं और चावल की खेती करने के तरीके सिखाए।
  • भारत में पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों ने खेती के आधुनिक तरीकों का सबसे पहले प्रयोग किया।
C) क्या भूमि यह धारण कर पाएगी- 
  • वैज्ञानिक रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि खेती की आधुनिक कृषि विधियों ने प्राकृतिक संसाधन आधार का अति उपयोग किया हैं।
  • मिट्टी की उर्वरता और भौम जल जैसे पर्यावरणीय संसाधन कई वर्षों में बनते हैं। एक बार नष्ट होने के बाद उन्हें पुनजीर्वित करना बहुत कठिन हैं।
D) पालमपुर के किसानों में भूमि वितरण- 
  • पालमपुर में 450 परिवारों में से लगभग एक तिहाई अर्थात् 150 परिवारों के पास खेती के लिए भूमि नहीं हैं, जो अधिकांशतः दलित हैं।
  • 240 परिवार जिनके पास भूमि है 2 हेक्टेयर से कम क्षेत्रफल वाले छोटे भूमि के टुकड़ों पर खेती करते हैं।
  • पालमपुर में मझोले और बड़े किसानों के 60 परिवार हैं, जो 2 हेक्टेयर अधिक भूमि पर खेती करते हैं। कुछ बड़े किसानों के पास 10 हेक्टेयर या इससे अधिक भूमि हैं।
E) श्रम की व्यवस्था- 
  • खेती में बहुत ज्यादा परिश्रम की आवश्यकता होती है। छोटे किसान अपने परिवारों के साथ अपने खेतों में स्वयं काम करते हैं।
  • मझोले और बड़े किसान अपने खेतों में काम करने के लिए दूसरे श्रमिकों को किराये पर लगातें हैं।
F) खेतों के लिए आवश्यक पूंजी- 
  • खेती के आधुनिक तरीकों के लिए बहुत अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है। अतः अब किसानों को पहले की अपेक्षा ज्यादा पैसा चाहिए।
  1. अधिसंख्य छोटे किसानों को पूंजी की व्यवस्था करने के लिए पैसा उधार लेना पड़ता हैं। ऐसे कर्ज़ों पर ब्याज की दर बहुत ऊंची होती हैं।
  2. छोटे किसानों के विपरीत मझोले और बड़े किसानों को खेती से बचत होती हैं। इस तरह वे आवश्यक पूंजी की व्यवस्था कर लेते हैं।
G) अधिशेष कृषि उत्पादों की बिक्री- 
  • कुछ किसान बचत का उपयोग पशु, ट्रक आदि खरीदने अथवा दुकान खोलने में भी करते हैं।
9. पालमपुर में गैर-कृषि क्रियाएं-
A) डेयरी: अन्य प्रचलित क्रिया-
  • पालमपुर के कई परिवारों में डेयरी एक प्रचलित क्रिया है। लोग अपनी भैंसों को कई तरह की घास और बरसात के मौसम में उगने वाली ज्वार और बाजरा (चरी) खिलाते हैं।
B) पालमपुर में लघु-स्तरीय विनिर्माण- 
  • शहरों और कस्बों में बड़ी फैक्ट्रियों में होने वाले विनिर्माण के विपरीत, पालमपुर में विनिर्माण में बहुत सरल उत्पादन विधियों का प्रयोग होता हैं।
  • विनिर्माण कार्य पारिवारिक श्रम की सहायता से अधिकतर घरों या खेतों में किया जाता हैं।
C) पालमपुर के दुकानदार- 
  • पालमपुर के व्यापारी वे दुकानदार है, जो शहरों के थोक बाजारों से कई प्रकार की वस्तुएं खरीदते हैं और उन्हें गांव में लाकर बेचते हैं।
  • कुछ परिवारों ने जिनके घर बस स्टैंड के निकट हैं, अपने घर के भाग में छोटी दुकान खोल ली हैं। 
D) परिवहन: तेजी से विकसित होता एक क्षेत्रक- 
  • रिक्शावाले, तांगेवाले, जीप, ट्रैक्टर, ट्रक ड्राइवर तथा परंपरागत बैलगाड़ी और दूसरी गाड़ियां चलाने वाले, वे लोग हैं, जो परिवहन सेवाओं में शामिल हैं।