CHAPTER- 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय
NOTES
1. 1848 में, एक फ्रांसीसी सरकार फेड्रिक साॅरयू ने चार चित्रों की एक श्रृंखला बनाई।- जनतांत्रिक और सामाजिक गणतंत्रों-
- सभी उम्र और सामाजिक वर्गो के स्त्री-पुरुष एक लंबी कतार में स्वतंत्रता की प्रतिमा की वंदना करते हुए जा रहे हैं।
- फ्रांसीसी क्रांति के दौरान कलाकार स्वतंत्रता को महिला का रूप प्रदान किया करते थे।
- प्रतिमा के सामने जमीन पर निरंकुश संस्थानों के ध्वस्त अवशेष बिखरे हुए हैं।
- साॅरयू के कल्पनादर्श (युटोपिया) में दुनिया के लोग अलग राष्ट्रों के समूहों में बंटे हुए हैं।
- जर्मनी के लोग काला, लाल और सुनहरा झंडा थामे हैं।
- ऊपर स्वर्ग से, ईसा मसीह, संत और फ़रिश्ते इस दृश्य पर अपनी नजरें जमाए हुए हैं।
- चित्रकार ने उनका इस्तेमाल दुनिया के राष्ट्रो के बीच भाईचारे के प्रतीक के रूप में किया हैं।
- उन्नीसवीं सदी के दौरान राष्ट्रवाद एक ऐसी ताकत बन कर उभरा जिसने यूरोप के राजनीतिक और मानसिक जगत में भारी परिवर्तन ला दिये।
- इन परिवर्तनों से यूरोप के बहु-राष्ट्रीय वंशीय साम्राज्यों के स्थान पर राष्ट्र-राज्य का उदय हुआ।
2. जनमत-संग्रह- एक प्रत्यक्ष मतदान जिसके जरिए एक क्षेत्र के सभी लोगों से एक प्रस्ताव को स्वीकार या अस्वीकार करने के लिए पूछा जाता है।
3. फ्रांसीसी क्रांति और राष्ट्र का विचार-
- राष्ट्रवाद की पहली स्पष्ट अभिव्यक्ति 1789 में फ्रांसीसी क्रांति के साथ हुई।
- फ्रांसीसी क्रांति से जो राजनैतिक और संवैधानिक बदलाव हुए उनसे प्रभुसत्ता राजतंत्र से निकल कर फ्रांसीसी नागरिकों के समूह में हस्तांतरित हो गई।
- पितृभूमि और नागरिक जैसे विचारों ने एक संयुक्त समुदाय के विचार पर बल दिया।
- नया फ्रांसीसी झंडा-तिरंगा चुना गया।
- नयी स्तुतियां रची गई, शपथें ली गई, शहीदों का गुणगान हुआ।
- भू-भाग में रहने वाले सभी नागरिकों के लिए समान कानून बनाए।
- आंतरिक आयात-निर्यात शुल्क समाप्त कर दिए गए और भार तथा नापने की एक समान व्यवस्था लागू की गई।
- क्रांतिकारियों ने यह भी घोषणा की कि फ्रांसीसी राष्ट्र का यह भाग्य और लक्ष्य था कि वह यूरोप के लोगों को निरंकुश शासकों से मुक्त कराए।
- फ्रांस में राजतंत्र वापस लाकर नेपोलियन ने नि: संदेह वहां प्रजातंत्र को नष्ट किया था।
- 1804 की नागरिक संहिता जिसे आमतौर पर नेपोलियन की संहिता के नाम से जाना जाता है, ने जन्म पर आधारित विशेषाधिकार समाप्त कर दिए थे।
- कानून के समक्ष बराबरी और संपत्ति के अधिकार को सुरक्षित बनाया।
- सामंती व्यवस्था को खत्म किया और किसानों को भू-दासत्व और जागीरदारी शुल्कों से मुक्ति दिलाई।
- शहरों में भी कारीगरों के श्रेणी-संघों के नियंत्रणों को हटा दिया गया।
- यातायात और संचार-व्यवस्था को सुधारा गया।
- एकसमान कानून, मानक भार तथा नाप और एक राष्ट्रीय मुद्रा से एक इलाके से दूसरे इलाके में वस्तुओं और पूंजी के आवागमन में सहूलियत होगी।
- लेकिन जीते हुए इलाकों में स्थानीय लोगों की फ्रांसीसी शासन के प्रति मिली-जुली प्रतिक्रियाएं थीं।
4. यूरोप में राष्ट्रवाद का निर्माण-
- पूर्वी और मध्य यूरोप निरंकुश राजतंत्रों के अधीन थे और इन इलाकों में तरह-तरह के लोग रहते थे। वे अपने आप को एक सामूहिक पहचान या किसी समान संस्कृति का भागीदार नहीं मानते थे।
- वे अलग-अलग भाषाएं बोलते थे और विभिन्न जातीय समूहों के सदस्य थे। उदाहरण- आस्ट्रिया हंगरी पर शासन करने वाला हैब्सबर्ग साम्राज्य
a) कुलीन वर्ग और नया मध्यवर्ग-
- सामाजिक और राजनीतिक रूप से जमीन का मालिक कुलीन वर्ग यूरोपीय महाद्वीप का सबसे प्रभुत्वशाली वर्ग था।
- वे ग्रामीण इलाकों में जायदाद और शहरी-हवेलियों के मालिक थे।
- कुलीन वर्ग संख्या के लिहाज से एक छोटा समूह था।
- जनसंख्या के अधिकांश लोग कृषक थे। पश्चिम में ज्यादातर जमीन पर किराएदार और छोटे काश्तकार खेती करते थे जबकि पूर्वी और मध्य यूरोप में भूमि विशाल जागीरों में बंटी थी जिस पर भूदास खेती करते थे।
- सामाजिक समूह श्रमिक-वर्ग के लोग और मध्य वर्ग जो उद्योगपतियों, व्यापारियों और सेवा क्षेत्र के लोगों से बने।
- मध्य और पूर्वी यूरोप में इन समूहों का आकार उन्नीसवीं सदी के अंतिम दशकों तक छोटा था।
b) उदारवादी राष्ट्रवाद के क्या मायने थे?
- उदारवाद यानी Liberalism शब्द लातिन भाषा के मूल Liber पर आधारित है जिसका अर्थ है आजाद।
- नए मध्य वर्ग के लिए उदारवाद का मतलब था व्यक्ति के लिए आजादी और कानून के समक्ष सबकी बराबरी।
- फ्रांसीसी क्रांति के बाद से उदारवाद निरंकुश शासक और पादरी वर्ग के विशेषाधिकारों की समाप्ति संविधान तथा संसदीय प्रतिनिधि सरकार का पक्षधर था।
- संपत्ति-विहीन पुरुष और सभी महिलाओं को राजनीतिक अधिकारों से वंचित रखा गया था।
- नेपोलियन की संहिता पुनः सीमित मताधिकार वापस आई और उसने महिलाओं को आवश्यक दर्जा देते हुए उन्हें पिताओं और पतियों के अधीन कर दिया।
- संपूर्ण उन्नीसवीं सदी तथा बीसवीं सदी के आरंभिक वर्षों में महिलाओं और संपत्ति-विहीन पुरुषों ने समान राजनीतिक अधिकारों की मांग करते हुए विरोध-आंदोलन चलाए।
- आर्थिक क्षेत्र में, उदारवाद, बाजारों की मुक्ति और चीजों तथा पूंजी के आवागमन पर राज्य द्वारा लगाए गए नियंत्रणों को खत्म करने के पक्ष में था।
- नेपोलियन के प्रशासनिक कदमों से अनगिनत छोटे प्रदेशों से 39 राज्यों का एक महासंघ बना।
- 1834 में प्रशा की पहल पर एक शुल्क संघ जाॅलवेराइन स्थापित किया गया जिसमें अधिकांश जर्मन राज्य शामिल हो गए।
c) 1815 के बाद एक नया रूढ़िवाद-
- 1815 में नेपोलियन की हार के बाद यूरोपीय सरकारें रूढ़िवाद की भावना से प्रेरित थी।
- रूढ़िवादी मानते थे कि राज्य और समाज की स्थापित पारंपरिक संस्थाएं; जैसे- राजतंत्र, चर्च, सामाजिक ऊंच-नीच, संपत्ति और परिवार को बनाए रखना चाहिए।
- रूढ़िवाद: ऐसा राजनीतिक दर्शन जो परंपरा, स्थापित संस्थानों और रिवाजों पर जोर देता है और तेज बदलावों की बजाय क्रमिक और धीरे-धीरे विकास को प्राथमिकता देता है।
- 1815 में ब्रिटेन, रूस, प्रशा और आस्ट्रिया जैसी यूरोपीय शक्तियों जिन्होंने मिलकर नेपोलियन को हराया था के प्रतिनिधि यूरोप के लिए एक समझौता तैयार करने के लिए वियना में मिले। इस सम्मेलन की मेजबानी आस्ट्रिया के चांसलर डयूक मैटरनिख ने की।
- वियना संधि का उद्देश्य उन कई सारे बदलावों को खत्म करना था जो नेपोलियाई युद्धों के दौरान हुए थे।
- 1815 में स्थापित रूढ़िवादी शासन व्यवस्थाएं निरंकुश थीं।
- नयी रूढ़िवादी व्यवस्था के आलोचक उदारवादी राष्ट्रवादियों द्वारा उठाया गया एक मुख्य मुद्दा था- प्रेस की आज़ादी।
d) क्रांतिकारी-
- स्वतंत्रता और मुक्ति के लिए प्रतिबद्ध होना और संघर्ष करना क्रांतिकारी होने के लिए जरूरी थी। ज्यादातर क्रांतिकारी राष्ट्र-राज्यों की स्थापना को आजादी के इस संघर्ष का अनिवार्य हिस्सा मानते थे।
- इटली का क्रांतिकारी ज्युसेपी मेत्सिनी- जन्म 1805 में जेनोआ में, वह कार्बोनारी नामक गुप्त संगठन का सदस्य बन गया। उसने दो भूमिगत संगठनों की स्थापना की।
- मेत्सिनी द्वारा राजतंत्र का घोर विरोध करके और प्रजातांत्रिक गणतंत्रों के अपने स्वप्न से मेत्सिनी ने रूढ़िवादियों को हरा दिया। मैटरनिख ने उसे हमारी सामाजिक व्यवस्था का सबसे ख़तरनाक दुश्मन बताया।
5. क्रांतियों का युग: 1830-1848
- रूढ़िवादी व्यवस्थाओं ने अपनी ताकत को मजबूत बनाने के लिए यूरोप के उदारवाद और राष्ट्रवाद को क्रांति से जोड़ा।
- क्रांतियों का नेतृत्व उदारवादी-राष्ट्रवादियों ने किया जो शिक्षित मध्यवर्गीय विशिष्ट लोग थे।
- प्रथम विद्रोह फ्रांस में जुलाई 1830 में हुआ।
- मैटरनिख ने एक बार यह टिप्पणी की थी कि जब फ्रांस छींकता है तो बाकी यूरोप को सर्दी-जुकाम हो जाता है। जुलाई क्रांति से ब्रसेल्स में भी विद्रोह भड़क गया जिसके फलस्वरूप यूनाइटेड किंगडम ऑफ द नीदरलैंड्स से अलग हो गया।
- यूरोप में क्रांतिकारी राष्ट्रवाद की प्रगति से यूनानियों का आजादी के लिए संघर्ष 1821 में आरंभ हो गया।
- कवियों और कलाकारों ने यूनान को यूरोपीय सभ्यता का पालना बता कर प्रशंसा की और एक मुस्लिम साम्राज्य के विरुद्ध यूनान के संघर्ष के लिए जनमत जुटाया।
- 1832 की कुस्तुनतुनिया की संधि ने यूनान को एक स्वतंत्र राष्ट्र की मान्यता दी।
a) रूमानी कल्पना और राष्ट्रीय भावना
- राष्ट्र के विचार के निर्माण में संस्कृति ने एक अहम भूमिका निभाई।
- राष्ट्र की सच्ची आत्मा लोकगीतों, जन-काव्य और लोकनृत्यों से प्रकट होती थी।
- स्थानीय बोलियों पर बल और स्थानीय लोक-साहित्य को एकत्र करने का उद्देश्य केवल प्राचीन राष्ट्रीय भावना को वापस लाना नहीं था बल्कि आधुनिक राष्ट्रीय संदेश को ज्यादा लोगों तक पहुंचाना था जिनमें से अधिकांश निरक्षर थे।
- भाषा ने भी राष्ट्रीय भावनाओं के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- रूसी कब्जे के बाद, पोलिश भाषा को स्कूलों से बलपूर्वक हटा कर रूसी भाषा को हर जगह जबरन लादा गया।
- पोलिश भाषा रूसी प्रभुत्व के विरुद्ध संघर्ष के प्रतीक के रूप में देखी जाने लगी।
b) भूख, कठिनाइयां और जन विद्रोह
- उन्नीसवीं सदी के प्रथम भाग में पूरे यूरोप में जनसंख्या में जबरदस्त वृद्धि हुई।
- ग्रामीण क्षेत्रों की अतिरिक्त आबादी शहर जाकर भीड़ से भरी गरीब बस्तियों में रहने लगी।
- यूरोप में उन इलाकों में जहां कुलीन वर्ग अभी भी सत्ता में था, कृषक सामंती शुल्कों और जिम्मेदारियों के बोझ तले दबे थे। खाने-पीने की चीजों के मूल्य बढ़ने या किसी वर्ष फसल के खराब होने के शहर और गांवों में व्यापक गरीबी फैल जाती थीं।
- खाने-पीने की कमी और व्यापक बेरोजगारी से पेरिस के लोग सड़कों पर उतर आए।
- राष्ट्रीय सभा ने एक गणतंत्र की घोषणा करते हुए 21 वर्ष से ऊपर सभी व्यस्क पुरुषों को मताधिकार प्रदान किया और काम के अधिकार की गारंटी दी। रोजगार उपलब्ध कराने के लिए राष्ट्रीय कारखाने स्थापित किए गए।
c) 1848: उदारवादियों की क्रांति
- 1848 में जब अनेक यूरोपीय देशों में गरीबी, बेरोजगारी और भुखमरी से ग्रस्त किसान-मजदूर विद्रोह कर रहे थे तब उसके समानांतर पढ़े-लिखे मध्यवर्गों की एक क्रांति भी हो रही थी।
- फ़रवरी 1848 की घटनाओं से राजा को गद्दी छोड़नी पड़ी थी और एक गणतंत्र की घोषणा की गई जो सभी पुरुषों के सार्विक मताधिकार पर आधारित था।
- उदारवादी मध्यवर्गों के स्त्री पुरुषों ने संविधानवाद की मांग को राष्ट्रीय एकीकरण की मांग से जोड़ दिया।
- यह राष्ट्र राज्य संविधान, प्रेस की स्वतंत्रता और संगठन बनाने की आज़ादी जैसे संसदीय सिद्धांतों पर आधारित था।
- उदारवादी आंदोलन के अंदर महिलाओं को राजनीतिक अधिकार प्रदान करने का मुद्दा विवादास्पद था।
- महिलाओं ने अपने राजनैतिक संगठन स्थापित किए, अखबार शुरू किए और राजनीतिक बैठकों और प्रदर्शनों में शिरकत की।
- 1848 में उदारवादी आंदोलनों को रूढ़िवादी ताकतें दबा पाने में कामयाब हुई किन्तु वे पुरानी व्यवस्था बहाल नहीं कर पाई।
- हैब्सबर्ग अधिकार वाले क्षेत्रों और रूस में भूदासत्व और बंधुआ मजदूरी समाप्त कर दी गई।
6. जर्मनी और इटली का निर्माण
a) जर्मनी-क्या सेना राष्ट्र की निर्माता हो सकती हैं?
- 1848 के बाद यूरोप में राष्ट्रवाद का जनतंत्र और क्रांति से अलगाव होने लगा।
- राष्ट्रवादी भावनाएं मध्यवर्गीय जर्मन लोगों में काफी व्याप्त थी और उन्होंने 1848 में जर्मन महासंघ के विभिन्न इलाकों को जोड़ कर निर्वाचित संसद द्वारा शासित राष्ट्र राज्य बनाने का प्रयास किया।
- जनवरी 1871 में, वर्साय में हुए एक समारोह में प्रशा के राजा विलियम प्रथम को जर्मनी का सम्राट घोषित किया गया।
- जर्मन राज्यों के राजकुमारों, सेना के प्रतिनिधियों और प्रमुख मंत्री आटो वाॅन बिस्मार्क समेत प्रशा के महत्वपूर्ण मंत्रियों की एक बैठक वर्साय के महल के ठंडे शीशमहल में हुई।
- जर्मनी में राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया ने प्रशा राज्य की शक्ति के प्रभुत्व को दर्शाता था।
b) इटली-
- इटली अनेक वंशानुगत राज्यों तथा बहु-राष्ट्रीय हैब्सबर्ग साम्राज्य में बिखरा हुआ था।
- उन्नीसवीं सदी के मध्य में इटली सात राज्यों में बंटा हुआ था जिनमें से केवल एक-सार्डिनिया पीडमाॅण्ड में एक इतालवी राजघराने का शासन था।
- 1830 के दशक में ज्युसेपे मेत्सिनी ने एकीकृत इतालवी गणराज्य के लिए एक सुविचारित कार्यक्रम प्रस्तुत करने की कोशिश की थी। उसने अपने उद्देश्यों के प्रसार के लिए यंग इटली नामक एक गुप्त संगठन भी बनाया था।
- इतालवी अभिजात वर्ग के तमाम अमीर और शिक्षित सदस्यों की तरह वह इतालवी भाषा से कहीं बेहतर फ्रेंच बोलता था।
- नियमित सैनिकों के अलावा ज्युसेपे गैरीबाॅल्डी के नेतृत्व में भारी संख्या में सशस्त्र स्वयंसेवकों ने इस युद्ध में हिस्सा लिया।
- 1861 में इमेनुएल द्वितीय को एकीकृत इटली का राजा घोषित किया गया।
c) ब्रिटेन की अजीब दास्तान
- ब्रिटेन में राष्ट्र-राज्य का निर्माण अचानक हुई कोई उथल-पुथल या क्रांति का परिणाम नहीं था।
- ब्रितानी द्वीपसमूह में रहने वाले लोगों- अंग्रेज, वेल्श, स्काॅट या आयरिश की मुख्य पहचान नृजातीय थी।
- नृजातीय- एक साझा नस्ली, जनजातीय या सांस्कृतिक उद्गम अथवा पृष्ठभूमि जिसे कोई समुदाय अपनी पहचान मानता है।
- एक लंबे टकराव और संघर्ष के बाद आंग्ल संसद ने 1688 में राजतंत्र से ताकत छीन ली थी।
- इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के बीच ऐक्ट ऑफ यूनियन (1707) से यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन का गठन हुआ। इससे इंग्लैंड व्यवहार में स्काॅटलैंड पर अपना प्रभुत्व जमा पाया।
- स्काॅटिश हाइलैंड्स के लोगों को अपनी गेलिक भाषा बोलने या अपनी राष्ट्रीय पोशाक पहनने की मनाही थी।
- आयरलैंड कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट धार्मिक गुटों में गहराई में बंटा हुआ था।
- अंग्रेजों ने आयरलैंड में प्रोटेस्टेंट धर्म मानने वालों को बहुसंख्यक कैथलिक देश पर प्रभुत्व बढ़ाने में सहायता की।
- 1801 में आयरलैंड को बलपूर्वक यूनाइटेड किंगडम में शामिल कर लिया गया।
7. राष्ट्र की दृश्य-कल्पना
- राष्ट्र को व्यक्ति का जामा पहनाते हुए जिस नारी रूप को चुना गया वह असल जीवन में कोई खास महिला नहीं थी। यह तो राष्ट्र के अमूर्त विचार को ठोस रूप प्रदान करने का प्रयास था। यानि नारी की छवि राष्ट्र का रूपक बन गई।
- रूपक- जब किसी अमूर्त विचार को किसी व्यक्ति या किसी चीज के जरिए इंगित किया जाता है। एक रूपकात्मक कहानी के दो अर्थ होते है- एक शाब्दिक और एक प्रतिकात्मक।
- फ्रांसीसी क्रांति के दौरान कलाकारों ने स्वतंत्रता, न्याय और गणतंत्र जैसे विचारों को व्यक्त करने के लिए नारी रूपक का प्रयोग किया।
- इंसाफ को आमतौर पर एक ऐसी महिला के प्रतिकात्मक रूप से व्यक्त किया जाता है जिसकी आंखों पर पट्टी बंधी हुई है और वह तराजू लिए हुए हैं।
- मारीआन की प्रतिमाएं सार्वजनिक चौकों पर लगाई गई ताकि जनता को एकता के राष्ट्रीय प्रतीक की याद आती रहे और लोग उससे तादात्म्य स्थापित कर सकें।
- चाक्षुष अभिव्यक्तियों में जर्मेनिया बलूत वृक्ष के पत्तों का मुकुट पहनती हैं क्योंकि जर्मन बलूत वीरता का प्रतीक है।
8. राष्ट्रवाद और साम्राज्यवाद
- उन्नीसवीं सदी की अंतिम चौथाई तक राष्ट्रवाद का वह आदर्शवादी उदारवादी-जनतांत्रिक स्वभाव नहीं रहा जो सदी के प्रथम भाग में था।
- यूरोपीय शक्तियों ने भी अपने साम्राज्यवादी उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अधीन लोगों की राष्ट्रवादी आकांक्षाओं का इस्तेमाल किया।
- 1871 के बाद यूरोप में गंभीर राष्ट्रवादी तनाव का स्त्रोत बाल्कन क्षेत्र था। इस क्षेत्र में भौगोलिक और जातीय भिन्नता थी।
- उन्नीसवीं सदी में आटोमन साम्राज्य ने आधुनिकीकरण और आंतरिक सुधारों के जरिए मजबूत बनना चाहा था किन्तु इसमें इसे बहुत कम सफलता मिली।
- बाल्कन क्षेत्र के विद्रोही राष्ट्रीय समूहों ने अपने संघर्षो को लंबे समय से खोई आजादी को वापस पाने के प्रयासों के रूप में देखा।
- रूस, जर्मनी, इंग्लैंड, आस्ट्रो-हंगरी की हर ताकत बाल्कन पर अन्य शक्तियों की पकड़ को कमजोर करके क्षेत्र में अपने प्रभाव को बढ़ाना चाहतीं थीं।
- साम्राज्यवाद से जुड़ कर राष्ट्रवाद 1914 में यूरोप को महाविपदा की ओर ले गया।