CLASS- 11 समाजशास्त्र (समाजशास्त्र परिचय)

 

CHAPTER- 1 समाजशास्त्र एवं समाज 

NOTES

1. प्रत्येक विद्यार्थी को तरक्की हेतु मेहनत से अध्ययन अवश्य करना चाहिए। लेकिन वह कितना अच्छा कर पाता है यह सामाजिक कारकों के एक पूरे समुच्चय द्वारा निर्धारित होता है।

  • किसी विद्यार्थी की नौकरी के अवसर विशिष्ट राजनीतिक-आर्थिक आंकड़ों के साथ-साथ उसके परिवार की सामाजिक पृष्ठभूमि से भी प्रभावित होते हैं। 
2. समाजशास्त्र का एक कार्य व्यक्तिगत समस्या और जनहित मुद्दे के बीच संबंध को स्पष्ट करना है। 

3. किसी व्यक्ति के लिए, किसी नौकरी की सामाजिक प्रतिष्ठा कितनी है अथवा नहीं है यह उस व्यक्ति के प्रासंगित  समाज की संस्कृति पर निर्भर करता है। 
  • इस अध्याय का दूसरा बिंदु है वर्तमान समय में व्यक्ति कैसे एक से अधिक समाजों से जुड़ा हुआ है और समाज कैसे असमान होते हैं।
4. समाजशास्त्र में समाज का विधिवत अध्ययन किया जाता है। यह अध्ययन दार्शनिक और धार्मिक अनुचिंतन एवं साथ ही समाज के रोजमर्रा के सामान्य प्रेक्षण से एकदम अलग है। 

5. समाजशास्त्रीय कल्पना हमें इतिहास और जीवनकथा को समझने एवं समाज में इन दोनों के संबंध को समझने में सहायता करती है। 

6. समकालीन इतिहास के तथ्य पुरुषों और स्त्रियों की सफलता और असफलता के तथ्य भी है। जब एक समाज का औद्योगिकरण होता है, एक किसान श्रमिक बन जाता है। एक व्यक्ति की जिंदगी हो या एक समाज का इतिहास दोनों को जाने बिना समझा नहीं जा सकता है। 

7. सी. राइट मिल्स समाजशास्त्रीय कल्पनाओं पर अपनी दृष्टि मुख्यतः इस बात को सुलझाने पर टिकाते है कि किस तरह व्यक्तिगत और जनहित परस्पर संबंधित है। 

8. समाजों में बहुलताएं एवं असमानताएं- 
  • जब हम विदेशियों के बीच हमारे समाज की बात करते हैं तो हमारा मतलब भारतीय समाज से हो सकता है लेकिन भारतीयों के बीच हमारे समाज को भाषा, समुदाय, धर्म या जाति अथवा जनजाति के संदर्भ में भी लिया जा सकता है। 
  • यह विविधता इस बात का निर्णय करने में कठिनाई पैदा करती है कि हम किस समाज की बात कर रहे हैं। 
9. समाजशास्त्र का परिचय- 
  • समाजशास्त्र मनुष्य के सामाजिक जीवन, समूहों और समाजों का अध्ययन है। एक सामाजिक प्राणी की तरह स्वयं हमारा व्यवहार इसकी विषय वस्तु है। 
  • लोगों ने हमेशा से उस समाज और समूह को देखा और समझा है जिसमें वे रहते हैं। यह सभी सभ्यताओं और युगों के दार्शनिकों, धार्मिक गुरुओं और विधिवेत्ताओं की पुस्तकों से स्पष्ट होता है। 
  • एक विषय के रूप में समाजशास्त्र का एक समाज के बारे में प्रेक्षण एवं विचार दार्शनिक अनुचिंतनों एवं सामान्य बौध्दिक समझ से हटकर है। 
  • जब एक समाजशास्त्री एक समाज का अध्ययन करता है तब वह जानकारियां इकट्ठा करने और प्रेक्षण करने को उत्सुक होता है, चाहे वह उसकी निजी पसंद के प्रतिकूल हो। 
  • समाजशास्त्र अपने आरंभिक काल से ही स्वयं को विज्ञान की तरह समझता है। समाजशास्त्र प्रचलित सामान्य बौध्दिक प्रेक्षणों या दार्शनिक अनुचिंतनों या ईश्वरवादी व्याख्यानों से हटकर वैज्ञानिक कार्यविधियों से बंधा हुआ है। 
  • समाजशास्त्र और सामान्य बौध्दिक ज्ञान के बीच के अंतरों का विस्तृत वर्णन समाजशास्त्रीय उपागम एवं पद्धति के बारे में एक स्पष्ट विचार देने में सहायता करेगा।
10. समाजशास्त्र और सामान्य बौध्दिक ज्ञान-
  • सामान्य बौध्दिक वर्णन सामान्यतः उन पर आधारित होते हैं जिन्हें हम प्रकृतिवादी और / या व्यक्तिवादी वर्णन कह सकते हैं। 
  • समाजशास्त्र सामान्य बौध्दिक प्रेक्षणों एवं विचारों तथा साथ ही साथ दार्शनिक विचारों दोनों से ही अलग है। 
11. बौद्धिक विचार जिनकी समाजशास्त्र की रचना में भूमिका है-
  • प्राकृतिक विकास के वैज्ञानिक सिद्धांतों और प्राचीन यात्रियों द्वारा पूर्व आधुनिक सभ्यताओं की खोज से प्रभावित होकर उपनिवेशी प्रशासकों, समाजशास्त्रियों एवं सामाजिक मानवविज्ञानियों ने समाजों के बारे में इस दृष्टिकोण से विचार किया कि उनका विभिन्न प्रकारों में वर्गीकरण किया जाए ताकि सामाजिक विकास के विभिन्न चरणों को पहचाना जा सके। 
  • डार्विन के.जीव विकास के विचारों का आरंभिक समाजशास्त्रीय विचारों पर दृढ़ प्रभाव था। समाज की प्रायः जीवित जैववाद से तुलना की जाती थी और इसके क्रमबद्ध विकास को चरणों में तलाशने के प्रयास किए जाते थे जिनकी जैविक जीवन से तुलना की जा सकती थी। 
  • ज्ञानोदय, एक यूरोपीय बौध्दिक आंदोलन जो सत्रहवीं शताब्दी के अंतिम वर्षों एवं अट्ठारहवीं शताब्दी में चला, कारण और व्यक्तिवाद पर बल देता है। 
  • प्रारंभिक आधुनिक काल के विचारक इस बात से सहमत थे कि ज्ञान में वृद्धि से सभी सामाजिक बुराइयों का समाधान संभव है। 
12. भौतिक मुद्दे जिनकी समाजशास्त्र की रचना में भूमिका है-
  • औद्योगिक उत्पादन की उन्नति के पीछे पूंजीवादी व्यवस्था एक प्रमुख शक्ति थी। 
  • पूंजीवाद में नयी अभिवृत्तियां एवं संस्थाएं सम्मिलित थीं। उद्यमी निश्चित और व्यवस्थित मुनाफे की आशा से प्रेरित थे। 
  • इंग्लैंड- औद्योगिक क्रांति का केंद्र था। 
- औद्योगिकरण से पहले, अंग्रेजों का मुख्य पेशा खेती करना एवं कपड़ा बुनना था। 
- अधिकांश लोग गांवों में रहते थे। समाज छोटा था। 
- सभी परंपरागत समाजों की तरह यह भी नजदीकी आपसी व्यवहार की विशेषता रखता था। 
  • रूढ़िवादी एवं परिवर्तनवादी दोनों ही तरह के चिंतक सामान्य श्रमिकों की प्रस्थिति की गिरावट को देखकर भयभीत थे, परंतु कुशल कारीगरों की स्थिति अलग थी। 
  • कार्ल मार्क्स के अनुसार, कारखाने दमनकारी थे। 
  • औद्योगिक पूंजीवाद के विकास से पहले काम की लय दिन के उजाले और जी तोड़ परिश्रम के बीच आराम या सामाजिक कर्तव्यों के आधार पर तय होती थी। 
  • कारखानों के उत्पादन के श्रम को समकालिक बना दिया। 
13. यूरोप में समाजशास्त्र के आरंभ और विकास को क्यों पढ़ना चाहिए?
  • समाजशास्त्र के अधिकांश मुद्दे एवं सरोकार भी उस समय की बात करते हैं जब यूरोपियन समाज अट्ठारहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी में औद्योगिकरण और पूंजीवाद के आगमन के कारण भयंकर रूप से परिवर्तन की चपेट में था। 
  • भारतीय समाज अपने औपनिवेशिक अतीत और अविश्वसनीय विविधता के कारण भिन्न है। 
14. भारत में समाजशास्त्र का विकास-
  • पश्चिमी समाजशास्त्रियों का पूंजीवाद एवं आधुनिक समाज के अन्य पक्षों पर लिखित दस्तावेज, भारत में हो रहे सामाजिक परिवर्तनों को समझने के लिए सर्वथा प्रासंगिक है। 
  • भारत में समाजशास्त्र को भारतीय समाज के बारे में पश्चिमी लेखकों द्वारा लिखित दस्तावेजों और विचारों से भी जूझना पड़ता था जो हमेशा सही नहीं होते थे।
  • समकालीन व विक्टोरिया कालीन विकास के विचारों से सहमति रखते हुए पाश्चात्य लेखकों ने भारतीय गांव को अवशेष के रूप में देखा जिसे समाज की शैशवावस्था कहा गया था। 
  • सामाजिक मानवविज्ञान की एक स्तरीय पाश्चात्य परिभाषा इस प्रकार होगी, गैर-पश्चिमी साधारण समाजों अर्थात् दूसरी संस्कृतियों का अध्ययन। 
15. समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र- 
  • समाजशास्त्र विषय इससे प्रभावित नहीं होता कि वह क्या अध्ययन करता है बल्कि इससे परिभाषित होता है वह एक चयनित क्षेत्र का अध्ययन कैसे करता है। 
  • समाजशास्त्र सामाजिक विज्ञानों के समूह का एक हिस्सा है जिसमें मानवविज्ञान, अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान, मनोविज्ञान एवं इतिहास शामिल हैं। 
  • सामाजिक विज्ञानों को अलग-अलग करना अंतरों को अतिरंजित करना और समानताओं पर आवरण चढ़ाने जैसा होगा। 
16. समाजशास्त्र एवं अर्थशास्त्र- 
  • अर्थशास्त्र वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन और वितरण का अध्ययन करता है। 
  • परंपरागत अर्थशास्त्र के अध्ययन का केंद्र आर्थिक क्रियाकलाप के संकुचित दायरे तक रहा है, मुख्यतः किसी एक समाज में अपर्याप्त वस्तुओं एवं सेवाओं का वितरण। 
  • आर्थिक विश्लेषण में प्रभावी प्रकृति का उद्देश्य किसी तरह से आर्थिक व्यवहार के सुनिश्चित कानूनों का निर्माण करना था। 
  • समाजशास्त्रीय उपागम आर्थिक व्यवहार को सामाजिक मानकों, मूल्यों, व्यवहारों और हितों के व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखता हैं। 
  • समाजशास्त्रीय प्रायः अर्थशास्त्रियों से इस बात के लिए ईर्ष्या रखते हैं कि उनकी शब्दावली उचित होती है और उनकी माप एकदम सही होती है और उनके सैध्दांतिक कार्यों के परिणाम को व्यावहारिक सुझावों में परिणित करने की क्षमता से भी जिसका जनहित नीतियों के लिए बड़ा अर्थ होता है। 
  • समाजशास्त्र किसी सामाजिक स्थिति की पहले से विद्यमान समझ को ज्यादा स्पष्ट और पर्याप्त समझ प्रदान करता है। 
17. समाजशास्त्र एवं राजनीति विज्ञान- 
  • परंपरागत राजनीति विज्ञान मुख्यतः दो तत्वों पर केंद्रित था- राजनीतिक सिद्धांत और सरकारी प्रशासन। दोनों में से किसी भी शाखा में राजनीतिक व्यवहार गहन रूप में शामिल नहीं है। 
  • समाजशास्त्र समाज के सभी पक्षों के अध्ययन को समर्पित है जबकि परंपरागत राजनीति विज्ञान ने अपने को शक्ति के औपचारिक संगठन के साकार रूप में अध्ययन तक सीमित रखा।
  • मैक्स बेवर जैसे समाजशास्त्री ने ऐसा काम किया है जिसको राजनीतिक समाजशास्त्र का नाम दिया जा सकता है। 
  • राजनीतिक समाजशास्त्र का क्षेत्र राजनीतिक व्यवहार के वास्तविक अध्ययन के रूप में बढ़ता जा रहा है। 
  • राजनीतिक संगठनों की सदस्यता, संगठनों में निर्णय लेने की प्रक्रिया राजनीतिक दलों के समर्थन के समाजशास्त्रीय कारण, राजनीति में जाति एवं जेंडर की भूमिका आदि का भी अध्ययन किया जाता रहा है। 
18. समाजशास्त्र एवं इतिहास- 
  • इतिहासकार एक तरह के नियम के मुताबिक अतीत का अध्ययन करते हैं, जबकि समाजशास्त्री समकालीन समय या कुछ ही पहले के अतीत में ज्यादा रुचि रखते हैं। 
  • इतिहास ठोस विवरणों का अध्ययन करता है, जबकि समाजशास्त्री ठोस वास्तविकताओं से सार निकालकर उनका वर्गीकरण एवं सामान्यीकरण करता है। 
  • आजकल इतिहास काफी हद तक समाजशास्त्रीय हो गया है और सामाजिक इतिहास तो इतिहास की विषय-वस्तु है। 
19. समाजशास्त्र एवं मनोविज्ञान- 
  • सामाजिक मनोविज्ञान, समाजशास्त्र और मनोविज्ञान के बीच एक पुल का कार्य करता है। 
  • समाजशास्त्र समाज में संगठित व्यवहार को समझने का प्रयास करता रहता है। यही वह तरीका है जिससे समाज के विभिन्न पक्षों द्वारा व्यक्तित्व का आकार मिलता है। 
20. समाजशास्त्र एवं सामाजिक मानवविज्ञान- 
  • अधिकांश देशों में मानवविज्ञान में पुरातत्व विज्ञान, भौतिक मानवविज्ञान, सांस्कृतिक इतिहास, भाषा की विभिन्न शाखाएं और सामान्य समाजों में जीवन के सभी पक्षों का अध्ययन शामिल हैं। 
  • समाजशास्त्र को आधुनिक जटिल समाजों का अध्ययन समझा जाता है जबकि सामाजिक मानवविज्ञान को सरल समाजों का अध्ययन समझा जाता है। 
  • सामाजिक मानवविज्ञान का विकास पश्चिम में उन दिनों हुआ जब यह माना जाता था कि पश्चिमी शिक्षित सामाजिक मानवविज्ञानियों ने गैर-यूरोपियन समाजों का अध्ययन किया। 
  • अतीत के मानवविज्ञानियों ने सरल समाजों का विवरण तटस्थ वैज्ञानिक तरीकों से लिखा था। 
  • सामाजिक मानवविज्ञान द्वारा सरल व निरक्षर समाजों पर किए गए परंपरागत अध्ययन का प्रभाव मानवविज्ञान की विषय वस्तु और विषय सामग्री पर पड़ा। 
  • सामाजिक मानवविज्ञान की प्रवृत्ति समाज के सभी पक्षों का एक समग्र में अध्ययन करने की होती थी। समाजशास्त्री जटिल समाजों का अध्ययन करते हैं।
  • सामाजिक मानवविज्ञान की विशेषताएं थीं, लंबी क्षेत्रीय कार्य परंपरा, समुदाय जिसका अध्ययन किया उसमें रहना और अनुसंधान की नृजाति पद्धतियों का उपयोग। 
  • भारतीय समाजशास्त्रीय अकसर भारतीय समाजों के अध्ययन में केवल अपनी संस्कृति का नहीं बल्कि उनका भी अध्ययन करते हैं जो उनकी संस्कृति का हिस्सा नहीं है। 
  • राज्य और वैश्वीकरण के मानवविज्ञानी अध्ययन किए गए हैं जोकि सामाजिक मानवविज्ञान की परंपरागत विषय-वस्तु से एकदम अलग हैं।