CLASS- 12 समकालीन विश्व राजनीति

CHAPTER- 1 दो ध्रुवियता का अंत 

NOTES


1. सोवियत प्रणाली- समाजवादी सोवियत गणराज्य (यू. एस. एस. आर.) रूस में हुई 1917 की समाजवादी क्रांति के बाद अस्तित्व में आया। 

  • यह क्रांति पूंजीवादी व्यवस्था के विरोध में हुई थी और समाजवाद के आदर्शों और समतामूलक समाज की जरूरत से प्रेरित थी।
  • सोवियत राजनीतिक प्रणाली की धुरी कम्युनिस्ट पार्टी थी। इसमें किसी अन्य राजनीतिक दल या विपक्ष के लिए जगह नहीं थी। 
  • दूसरे विश्वयुद्ध के बाद पूर्वी यूरोप के देश सोवियत संघ के अंकुश में आ गये। इन सभी देशों की राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था को सोवियत संघ की समाजवादी प्रणाली की तर्ज पर ढाला गया। 
  • दूसरा विश्वयुद्ध के बाद सोवियत संघ महाशक्ति के रूप में उभरा। 
  • सोवियत संघ का घरेलू उपभोक्ता-उद्योग बहुत उन्नत था और पिन से लेकर कार तक सभी चीजों का उत्पादन वहां होता था। 
  • सरकार बुनियादी जरूरत की चीजें मसलन स्वास्थ्य-सुविधा, शिक्षा, बच्चों की देखभाल तथा लोक-कल्याण की अन्य चीजें रियायती दर पर मुहैया कराती थी। 
  • लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी नहीं होने के कारण लोग अपनी असहमति अक्सर चुटकुलों और कार्टूनों में व्यक्त करते थे।
  • जनता ने अपनी संस्कृति और बाकी मामलों की साज-संभाल अपने आप करने के लिए 15 गणराज्यों को आपस में मिलाकर सोवियत संघ बनाया था। 
  • सोवियत संघ प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे के मामले में पश्चिमी देशों की तुलना में पीछे रह गया। 
  • सोवियत संघ ने 1979 में अफगानिस्तान में हस्तक्षेप किया। इससे सोवियत संघ की व्यवस्था और भी कमजोर हुई। 
2. गोर्बाचेव और सोवियत संघ का विघटन- 
  • मिखाइल गोर्बाचेव ने इस व्यवस्था को सुधारना चाहा। वे 1980 के दशक के मध्य में सोवियत संघ की कम्यूनिस्ट पार्टी के महासचिव बने। 
  • गोर्बाचेव ने पश्चिम के देशों के साथ संबंधों को सामान्य बनाने, सोवियत संघ को लोकतांत्रिक रूप देने और वहां सुधार करने का फैसला किया। 
  • गोर्बाचेव के शासक रहते सोवियत संघ ने ऐसी गड़बड़ियों में उस तरह का हस्तक्षेप नहीं किया जैसा अतीत में होता था। 
  • सोवियत संघ के बाहर हो रहे इन परिवर्तनों के साथ-साथ अंदर भी संकट गहराता जा रहा था और इससे सोवियत संघ के विघटन की गति और तेज हुई। 
  • गोर्बाचेव ने देश के अंदर आर्थिक-राजनीतिक सुधारों और लोकतंत्रीकरण की नीति चलायी। 
  • 1991 में एक तख्तापलट हुआ। येल्तसिन ने इस तख्तापलट के विरोध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और वे नायक की तरह उभरें।
  • रूसी गणराज्य ने, जहां बोरिस येल्तसिन ने आम चुनाव जीता था, केंद्रीकृत नियंत्रण को मानने से इंकार कर दिया। 
  • सन् 1991 के दिसम्बर में येल्तसिन के नेतृत्व में सोवियत संघ के तीन बड़े गणराज्य रूस, यूक्रेन और बेलारूस ने सोवियत संघ की समाप्ति की घोषणा की। 
  • साम्यवादी सोवियत गणराज्य के विघटन की घोषणा और स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रकुल का गठन बाकी गणराज्यों, खासकर मध्य एशियाई गणराज्यों के लिए बहुत आश्चर्यचकित करने वाला था। 
  • रूस को सोवियत संघ का उत्तराधिकारी राज्य स्वीकार किया गया। रूस को सुरक्षा परिषद् में सोवियत संघ की सीट मिली। सोवियत संघ ने जो अंतर्राष्ट्रीय करार और संधियां की थी उन सब को निभाने का जिम्मा अब रूस का था। 
  • सोवियत संघ के विघटन के बाद के समय में पूर्ववर्ती गणराज्यों के बीच एकमात्र परमाणु शक्ति संपन्न देश का दर्जा रूस को मिला। 
3. सोवियत संघ के विघटन के कारण-
  • सोवियत संघ की राजनीतिक-आर्थिक संस्थाएं अंदरुनी कमजोरी के कारण लोगों की आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सकी। 
  • कई सालों तक अर्थव्यवस्था गतिरुध्द रही। इससे उपभोक्ता-वस्तुओं की बड़ी कमी हो गई और सोवियत संघ की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अपनी राजव्यवस्था को शक की नजर से देखने लगा। 
  • सोवियत संघ ने अपने संसाधनों का अधिकांश परमाणु हथियार और सैन्य साजो-सामान पर लगाया। उसने अपने संसाधन पूर्वी यूरोप के अपने पिछलग्गू देशों के विकास पर भी खर्च किए ताकि वे सोवियत नियंत्रण में बने रहें।
  • पश्चिमी मुल्कों की तरक्की के बारे में सोवियत संघ के आम नागरिकों की जानकारी बढ़ी। 
  • सोवियत संघ पर कम्युनिस्ट पार्टी ने 70 सालों तक शासन किया और यह पार्टी अब जनता के प्रति जवाबदेह नहीं रह गई थी। 
  • लोग अपने को राजव्यवस्था और शासकों से जोड़कर नहीं देख पा रहे थे और सरकार का जनाधार खिसकता चला गया। 
  • गोर्बाचेव ने अर्थव्यवस्था को सुधारने, पश्चिम की बराबरी पर लाने और प्रशासनिक ढांचे में ढील देने का वायदा किया। 
  • राष्ट्रीयता और संप्रभुता के भावों का उभार सोवियत संघ के विघटन का अंतिम और सर्वाधिक तात्कालिक कारण सिध्द हुआ।
  • गोर्बाचेव के सुधारों ने राष्ट्रवादियों के असंतोष को इस सीमा तक भड़काया कि उस पर शासकों का नियंत्रण नहीं रहा।
4. विघटन की परिणतियां-
  • सोवियत संघ की दूसरी और पूर्वी यूरोप की समाजवादी व्यवस्था के पतन के परिणाम विश्व राजनीति के लिहाज से गंभीर रहें। 
  • समाजवादी प्रणाली पूंजीवादी प्रणाली को पछाड़ पाएगी या नहीं- यह विचारधारात्मक विवाद अब कोई मुद्दा नहीं रहा। 
  • शीतयुद्ध के समाप्त होने से हथियारों की होड़ भी समाप्त हो गई और एक नई शांति की संभावना का जन्म हुआ। 
  • विश्व राजनीति में शक्ति-संबंध बदल गए और इस कारण विचारों और संस्थाओं के आपेक्षिक प्रभाव में भी बदलाव आया।
  • सोवियत खेमे के अंत का एक अर्थ था नए देशों का उदय।
5. शाॅक थेरेपी-
  • साम्यवाद के पतन के बाद पूर्व सोवियत संघ के गणराज्य एक सत्तावादी, समाजवादी व्यवस्था से लोकतांत्रिक पूंजीवादी व्यवस्था तक के कष्टप्रद संक्रमण से होकर गुजरें।
  • रूस, मध्य एशिया के गणराज्य और पूर्वी यूरोप के देशों में पूंजीवाद की ओर संक्रमण का एक खास माॅडल अपनाया गया।
  • विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा निर्देशित इस माॅडल को शाॅक थेरेपी कहा गया। 
  • शाॅक थेरेपी की सर्वोपरि मान्यता थी कि मिल्कियत का सबसे प्रभावी रूप निजी स्वामित्व होगा। इसके अंतर्गत राज्य की संपदा के निजीकरण और व्यावसायिक स्वामित्व के ढांचे को तुरंत अपनाने की बात शामिल थी।
थेरेपी के परिणाम-
  • 1990 में अपनायी गई शाॅक थेरेपी जनता को उपभोग के आनंदलोक तक नहीं ले गई जिसका उसने वादा किया था।
  • अमूमन शाॅक थेरेपी से पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो गई और इस क्षेत्र की जनता को बर्बादी की मार झेलनी पड़ी।
  • रूसी मुद्रा रूबल के मूल्य में नाटकीय ढंग से गिरावट आई। मुद्रास्फीति इतनी ज्यादा बढ़ी कि लोगों की जमापूंजी जाती रही। 
  • रूस ने खाद्यान्न का आयात करना शुरू किया। सन् 1999 में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद 1989 की तुलना में कहीं नीचे था।
  • पूर्व सोवियत संघ में शामिल रहे गणराज्यों और खासकर रूस में अमीर और गरीब लोगों के बीच तीखा विभाजन हो गया।
  • रूस सहित अधिकांश देशों की अर्थव्यवस्था ने सन् 2000 में यानी अपनी आजादी के 10 साल बाद खड़ा होना शुरू किया। 
6. संघर्ष और तनाव-
  • पूर्व सोवियत संघ के अधिकांश गणराज्य संघर्ष की आशंका वाले क्षेत्र हैं। 
  • रूस के दो गणराज्यों चेचन्या और दागिस्तान में हिंसक अलगाववादी आंदोलन चले।
  • मध्य एशिया में तजिकिस्तान दस वर्षों यानी 2001 तक गृहयुद्ध की चपेट में रहा। इस पूरे क्षेत्र में कई सांप्रदायिक संघर्ष चल रहे हैं।
  • पूर्वी यूरोप में चेकोस्लोवाकिया शांतिपूर्वक दो भागों में बंट गया। चेक तथा स्लोवाकिया नाम के दो देश बने।
7. पूर्व-साम्यवादी देश और भारत- 
  • भारत ने साम्यवादी रह चुके सभी देशों के साथ अच्छे संबंध कायम किए हैं लेकिन भारत के संबंध रूस के साथ सबसे ज्यादा गहरे हैं।
  • भारत-रूस संबंधों का इतिहास आपसी विश्वास और साझे हितों का इतिहास है। 
  • 2001 के भारत-रूस सामरिक समझौते के अंग के रूप में भारत और रूस के बीच 80 द्विपक्षीय दस्तावेजों पर हस्ताक्षर हुए हैं।
  • भारत रूस के लिए हथियारों का दूसरा सबसे बड़ा खरीददार देश है।
  • रूस भारत की परमाण्विक योजना के लिए भी महत्वपूर्ण है। 
  • रूस ने भारत के अंतरिक्ष उद्योग में भी जरूरत के वक्त क्रायोजेनिक राॅकेट देकर मदद की है।