Chapter- 7 पौधो को जानिए
Notes
शाक- इनका आकार छोटा होता है और तने मुलायम होते हैं।
उदाहरण- गेहूं, घास, पुदिना आदि।
झाड़ी- ये मध्यम आकार के होते हैं। झाड़ी के तने में शाखाएं जमीन से थोड़े ऊपर से ही निकलती है।
पादप की संरचना-
तना- तने में पतियां, शाखाएं, कली, फल व फूल होते हैं। तना जल का संवहन करता है। जल मे विलीन खनीज, जल के साथ तने में ऊपर पहुंच जाते हैं।
पती- पती का वह भाग जिसके द्वारा वह तने से जुड़ी होती है, पर्णवृंत कहलाता है।
वाष्पोत्सर्जन- जब जल की बूंदें वाष्प के रूप मे परिवर्तित हो जाती है तो इसे वाष्पोत्सर्जन कहते हैं।
प्रकाश संश्लेषण- पतियां प्रकाश और हरे रंग के एक पदार्थ की उपस्थिति में अपना भोजन बनाती है। इस प्रक्रिया में जल एवं कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग करती है। इस प्रक्रम को प्रकाश-संश्लेषण कहते हैं। इस प्रक्रम में आक्सीजन निष्कासित होती है।
जड़- यह पौधे के नीचे के मिट्टी में होती है। ये दो प्रकार की होती है- 1. मूसला जड़ तथा 2. झकडा जड़।
मूसला जड़- जिन पौधो की जड़ों में एक मुख्य जड़ होती है तथा उसके चारों ओर से जड़े निकलती है कहलातीं हैं तथा छोटी जड़ों को पार्श्व जड़ कहते हैं।
झकडा/रेशेदार जड़- जिन पौधो की कोई भी मुख्य जड़ नहीं होती। सभी जड़े एक समान दिखाई पड़ती है। इन्हें जकड़ा जड़ अथवा रेशेदार जड़ कहते हैं।
पुष्प- पुष्प अथवा फूल जनन संरचना हैं जो पौधो में पाए जाते हैं। जिसे एग्नियों शुक्राणु भी कहा जाता हैं। एक फूल की जैविक क्रिया यह है कि वह पुरुष शुक्राणु और मादा बीजाणु के संघ के लिए मध्यस्तता करें।
बाह्य दल- पुष्प के सबसे बाहरी भाग को बाह्य दल कहते हैं। यह पुष्प के आंतरिक भागों की रक्षा करता है जब वह कालिका अवस्था में होता है। बाह्यदल के लक्षण यह आमतौर पर हरे रंग का होता हैं।
स्त्रीकेसर- पुष्प के केंद्र में स्थित भाग को स्त्रीकेसर कहते हैं।
अंडाशय- यह स्त्रीकेसर का सबसे निचला एवं फूला हुआ भाग हैं। इसकी आंतरिक संरचना के अध्ययन के लिए इसे काटते हैं।
बीजांड- अंडाशय में छोटी-छोटी गोल संरचनाएं होती है जिन्हें बीजांड कहते हैं।
पुंकेसर- पुष्प का पराग उत्पादक भाग, जिसमें आमतौर पर परागकोश को सहारा देने वाला एक पतला तंतु होता है।
परागकोश- पुंकेसर का वह भाग जहां पराग का उत्पादन होता हैं।
झाड़ी- ये मध्यम आकार के होते हैं। झाड़ी के तने में शाखाएं जमीन से थोड़े ऊपर से ही निकलती है।
उदाहरण- धनिया, गुलाब आदि।
वृक्ष- इनका आकार बड़ा होता हैं। वृक्ष पर तना, शाखाएं, पतियां, फूल और फल होते हैं।
वृक्ष- इनका आकार बड़ा होता हैं। वृक्ष पर तना, शाखाएं, पतियां, फूल और फल होते हैं।
उदाहरण- आम, नीम आदि।
विसर्पी लता- कुछ पौधो का तना कमजोर होता हैं कि ये अपने आप खड़े नहीं होते। इस तरह के पौधे जमीन पर ही आगे बढ़ते हैं तो उन्हें विसर्पी लता कहते हैं।
विसर्पी लता- कुछ पौधो का तना कमजोर होता हैं कि ये अपने आप खड़े नहीं होते। इस तरह के पौधे जमीन पर ही आगे बढ़ते हैं तो उन्हें विसर्पी लता कहते हैं।
उदाहरण- तरबूज, कद्दू आदि।
आरोही लता- जब कमजोर तने वाला पौधे किसी वस्तु के सहारे ऊपर चढ़ जाता है तो उसे आरोही लता कहते हैं।
आरोही लता- जब कमजोर तने वाला पौधे किसी वस्तु के सहारे ऊपर चढ़ जाता है तो उसे आरोही लता कहते हैं।
उदाहरण- अंगूर, मनी प्लांट आदि।
पादप की संरचना-
तना- तने में पतियां, शाखाएं, कली, फल व फूल होते हैं। तना जल का संवहन करता है। जल मे विलीन खनीज, जल के साथ तने में ऊपर पहुंच जाते हैं।
पती- पती का वह भाग जिसके द्वारा वह तने से जुड़ी होती है, पर्णवृंत कहलाता है।
- पती के चपटे हरे भाग को फलक कहते हैं।
- पती के अंदर बनी रेखित संरचना शिरा होती है। पती के मध्य में एक मोटी शिरा होती है, इसे मध्य शिरा कहते हैं।
- पतियो पर शिराओं द्वारा बनाए गए डिजाइन को शिरा विन्यास कहते हैं। यदि यह डिजाइन मध्य शिरा के दोनों ओर जाल जैसा है तो यह शिरा-विन्यास जालिका रूपी कहलाता हैं।
- जब यह शिरा विन्यास एक दूसरे के समांतर होते है तो इस शिरा विन्यास को समांतर शिरा-विन्यास कहते हैं।
वाष्पोत्सर्जन- जब जल की बूंदें वाष्प के रूप मे परिवर्तित हो जाती है तो इसे वाष्पोत्सर्जन कहते हैं।
प्रकाश संश्लेषण- पतियां प्रकाश और हरे रंग के एक पदार्थ की उपस्थिति में अपना भोजन बनाती है। इस प्रक्रिया में जल एवं कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग करती है। इस प्रक्रम को प्रकाश-संश्लेषण कहते हैं। इस प्रक्रम में आक्सीजन निष्कासित होती है।
जड़- यह पौधे के नीचे के मिट्टी में होती है। ये दो प्रकार की होती है- 1. मूसला जड़ तथा 2. झकडा जड़।
मूसला जड़- जिन पौधो की जड़ों में एक मुख्य जड़ होती है तथा उसके चारों ओर से जड़े निकलती है कहलातीं हैं तथा छोटी जड़ों को पार्श्व जड़ कहते हैं।
झकडा/रेशेदार जड़- जिन पौधो की कोई भी मुख्य जड़ नहीं होती। सभी जड़े एक समान दिखाई पड़ती है। इन्हें जकड़ा जड़ अथवा रेशेदार जड़ कहते हैं।
- जड़े मिट्टी से जल का अवशोषण करती है तथा तना, जल एवं खनिज को पती एवं पौधे के अन्य भागों तक पहुंचाता है। पत्तियां भोजन संश्लेषित करती हैं। यह भोजन तने से होकर पौधे के विभिन्न भागों में संग्रहित हो जाता है। कुछ जड़ों जैसे- गाजर, मूली आदि को हम खाते हैं।
पुष्प- पुष्प अथवा फूल जनन संरचना हैं जो पौधो में पाए जाते हैं। जिसे एग्नियों शुक्राणु भी कहा जाता हैं। एक फूल की जैविक क्रिया यह है कि वह पुरुष शुक्राणु और मादा बीजाणु के संघ के लिए मध्यस्तता करें।
बाह्य दल- पुष्प के सबसे बाहरी भाग को बाह्य दल कहते हैं। यह पुष्प के आंतरिक भागों की रक्षा करता है जब वह कालिका अवस्था में होता है। बाह्यदल के लक्षण यह आमतौर पर हरे रंग का होता हैं।
स्त्रीकेसर- पुष्प के केंद्र में स्थित भाग को स्त्रीकेसर कहते हैं।
अंडाशय- यह स्त्रीकेसर का सबसे निचला एवं फूला हुआ भाग हैं। इसकी आंतरिक संरचना के अध्ययन के लिए इसे काटते हैं।
बीजांड- अंडाशय में छोटी-छोटी गोल संरचनाएं होती है जिन्हें बीजांड कहते हैं।
पुंकेसर- पुष्प का पराग उत्पादक भाग, जिसमें आमतौर पर परागकोश को सहारा देने वाला एक पतला तंतु होता है।
परागकोश- पुंकेसर का वह भाग जहां पराग का उत्पादन होता हैं।