Chapter- 9 सजीव-विशेषताएं एवं आवास
NOTES
1. समुद्री पौधे तथा जंतु लवणीय जल में रहते हैं तथा श्वसन के लिए जल में विलेय आक्सीजन का उपयोग करते हैं।
2. मरुस्थल में जल बहुत कम में उपलब्ध होता है, दिन में बहुत गर्म एवं रात में ठंडा होता है तथा वहां रहने वाले जीव एवं पौधे आसपास की वायु का उपयोग करते हैं।
3. दो विभिन्न प्रकार के परिवेश मरुस्थल एवं समुद्र में पाए जाने वाले जंतु:-
a. ऊंट- ऊंट की शारीरिक संरचना मरुस्थलीय परिस्थितियों में रहने योग्य बनाती है। ऊंट के पैर लंबे तथा शरीर रेत की गर्मी से दूर रहता है। मूत्रोत्सर्जन की मात्रा बहुत कम होती है तथा मल शुष्क होता है। पसीना भी नहीं आता क्योंकि शरीर से जल का ह्रास बहुत कम होता है।
b. मछली- इनका शरीर धारा-रेखीय होता है। उनकी यह आकृति उन्हें जल के अंदर विचरण करने में सहायता करती है। मछलियों का शरीर चिकने शल्कों से ढका होता है। ये शल्क मछली को सुरक्षा तो प्रदान करते हैं साथ ही उन्हें जल में सुगम गति करने में भी सहायक है। मछली के पंख एवं पूंछ चपटी होती है, जो उन्हें जल के अंदर दिशा परिवर्तन एवं संतुलन बनाए रखने में सहायता करते हैं। मछली के गिल होते हैं जो उसे जल में श्वसन लेने में सहायता करता है।
4. अनुकूलन- जिन विशिष्ट संरचनाओं अथवा स्वभाव की उपस्थिति किसी पौधे अथवा जंतु को उसके परिवेश में रहने के योग्य बनाती है, अनुकूलन कहलातीं हैं।
5. आवास- किसी सजीव का वह स्थान जिसमें वह रहता है।
6. स्थलीय आवास- स्थल (जमीन) पर पाए जाने वाले पौधों एवं जंतुओं के आवास को स्थलीय आवास कहते हैं। उदाहरण- वन, मरुस्थल आदि।
7. जलीय आवास- जलाशय, दलदल, झील, नदियां एवं समुद्र जहां पौधे एवं जंतु जल में रहते हैं, जलीय आवास हैं।
8. जैव घटक- किसी आवास में पाए जाने वाले सभी जीव जंतु जैव घटक है।
9. अजैव घटक- चट्टान, मिट्टी, वायु एवं जल जैसी अनेक निर्जीव वस्तुएं आवास के अजैव घटक है।
10. पर्यनूकूलन- अल्प अवधि में किसी एक जीव के शरीर में होने वाले छोटे-छोटे परिवर्तन पर्यनूकूलन कहलाते हैं।
विभिन्न आवासों की यात्रा
कुछ स्थलीय आवास-
1. मरुस्थल- मरुस्थलीय पौधे वाष्पोत्सर्जन द्वारा जल की बहुत कम मात्रा निष्कासित करते हैं। मरुस्थलीय पौधों में पतियां या तो अनुपस्थित होती है अथवा बहुत छोटी होती है। जैसे- नागफनी।
यहां के पौधो में वाष्पोत्सर्जन की क्रिया को कम करने के लिए पतियां या तो होती ही नहीं है या कांटों का रुप ले लेती है और जड़े अधिक गहराई तक जाती है।
2. पर्वतीय क्षेत्र- ये आवास क्षेत्र सामान्यतः बहुत ठंडे होते हैं और इनमें तेज हवा चलती है। यहां के वृक्ष सामान्यतः शंक्वाकार होते हैं तथा इनकी शाखाएं तिरछी होती है। कुछ वृक्षों की पत्तियां सुई के आकार की होती है। पर्वतीय क्षेत्र में पाए जाने वाले जंतु जंतुओं की त्वचा मोटी या फर ठंड से उनका बचाव करती है। उदाहरण- याक के शरीर पर लंबे बाल, पहाड़ी तेंदुए के शरीर पर फर, बकरी के मजबूत खुर आदि।
3. घास स्थल- शेर वन मे अथवा घास स्थल में रहता है तथा एक ऐसा शक्तिशाली जंतु है, जो हिरण जैसे जंतुओं का शिकार कर उन्हें मारकर खा जाता है।
- शेर- इसके अगले पैर के नखर लंबे होते हैं जिन्हें वह पादांगुलियों के अंदर खींचकर छिपा सकता है। यह मटमैला रंग होता है जो शिकार के दौरान उसे घास के सूखे मैदानों में छिपाए रखता है और शिकार को पता भी नहीं चलता। चेहरे के सामने की आंखों उसे वन में दूर तक शिकार खोजने में सहायक होती है।
- हिरण- पौधों के कठोर तनो को चबाने के लिए इसके मजबूत दांत होते हैं। उसके लंबे कान उसे शिकारी की गतिविधि की जानकारी देते हैं। इसके सिर के पार्श्व में दोनों ओर स्थित आंखें प्रत्येक दिशा में देखकर खतरा महसूस कर सकती हैं। हिरण की तेज गति उसे शिकारी से दूर भागने में सहायक होती है।
कुछ जलीय आवास-
1. समुद्र- बहुत से समुद्री जंतुओं का शरीर भी धारा-रेखीय होता है जिससे वह जल में सुगमता से चल सकते हैं। स्क्विड एवं आक्टोपस जैसे कुछ समुद्री जंतुओं का शरीर आमतौर पर धारा-रेखीय नहीं होता। वे समुद्र की गहराई में, तलहटी में रहते हैं तथा अपनी ओर आने वाले शिकार को पकड़ते हैं। जल में श्वास लेने के लिए इनमें गिल होते हैं।
- डालफीन एवं व्हेल जैसे कुछ जंतुओं में गिल नहीं होते। ये सिर पर स्थित नासाद्वार अथवा वात-छिद्रो द्वारा श्वास लेते हैं। ये जल में लंबे समय तक बिना श्वास लिए रह सकते हैं।
2. तालाब एवं झील- जलीय पौधे में जड़े आकार में बहुत छोटी होती है एवं इनका मुख्य कार्य पौधे को तलहटी में जमाए रखना होता है। इन पौधों का तना लंबा, खोखला एवं हल्का होता है। कुछ पौधों की पत्तियां संकरी एवं पतले रिबन की तरह होती है। कुछ अन्य जलमग्न पौधों में पतियां बहुत अधिक विभाजित होती है जिससे जल इनके बीच से बहता रहता है और पती को कोई क्षति भी नहीं होती।
11. हम जानते हैं कि कुर्सी, मेज, पत्थर अथवा एक सिक्का सजीव नहीं है। हम जानते हैं कि हम जीवित है और हमारी ही तरह संसार के सभी मनुष्य तथा कुत्ता, बिल्ली, बंदर, गिलहरी, कीट जैसे जंतु सजीव है।
- पौधे सजीव है, परंतु वे कुत्ते नहीं और न ही चल सकते हैं। एक कार चल सकती है फिर भी वह निर्जीव है। पौधे एवं जंतु समय के साथ वृध्दि करते हैं।
- आकाश में बादल अपने आकार में वृद्धि करते हैं परन्तु वह सजीव नहीं है।
12. सजीवो को भोजन की आवश्यकता- सभी जीवों को भोजन की आवश्यकता होती है। पौधे प्रकाश संश्लेषण के द्वारा अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। जंतु भोजन के लिए पौधों अथवा अन्य जंतुओं पर निर्भर रहते हैं।
- भोजन सजीवों को उनकी वृद्धि के लिए आवश्यक ऊर्जा प्रदान करता है। सजीवो को उनके अंदर होने वाले अन्य जैव-प्रक्रमों के लिए भी ऊर्जा की आवश्यकता है।
13. जीवों में वृद्धि- सभी जीवों में वृद्धि समय के साथ होती रहती है और कुछ वर्ष बाद वह वयस्क हो जाते हैं। उदाहरण- कुत्ते के पिल्ले वयस्क हो जाते हैं, एक अंडे से स्फुटित होकर चूजा वृद्धि करके मुर्गी अथवा मुर्गा में परिवर्तित हो जाता है। पौधों में भी वृद्धि होती है।
14. श्वसन क्रिया- जब हम श्वास लेते हैं तो बाहर की वायु शरीर के अंदर जाती है। जब हम श्वास छोड़ते हैं तो शरीर के अंदर की वायु बाहर निकल जाती है। श्वास लेना तथा छोड़ना ही श्वसन क्रिया कहलाती है। श्वसन में अंदर ली गई वायु की आक्सीजन की कुछ मात्रा का उपयोग होता है। इम क्रिया में बनी कार्बन डाइऑक्साइड को हम श्वास द्वारा बाहर निष्कासित कर देते हैं। गाय, भैंस, कुत्ता तथा बिल्ली जैसे कुछ जंतुओं में श्वसन क्रिया मनुष्य की तरह ही होती है।
- कुछ जंतुओं में गैस आदान-प्रदान का तरीका भिन्न हो सकता है, जो श्वसन का एक हिस्सा होता है। उदाहरण- केंचुआ त्वचा से सांस लेता है, मछली में गिल, पौधों में पतियां।
- पौधे वायु की कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग भोजन बनाने के लिए करते हैं तथा आक्सीजन को छोड़ते हैं।
15. उद्दीपन- जब हमारा पैर कांटे पर पड़ जाता है, अंधेरे स्थान से तेज धूप में आते हैं तो आंखें स्वतः ही कुछ क्षण के लिए बंद हो जाती है। इन सभी प्रकार के परिवर्तनों के प्रति अनुक्रिया करते हैं। वातावरण में होने वाले इन परिवर्तनों को उद्दीपन कहते हैं।
16. उत्सर्जन- विभिन्न जैव-प्रक्रमों के फलस्वरूप हमारे शरीर में कुछ अपशिष्ट पदार्थ उत्पन्न होते हैं, सजीवों द्वारा इन अपशिष्ट पदार्थों के निष्कासन के प्रक्रम को उत्सर्जन कहते हैं।
17. सजीव प्रजनन- जंतु प्रजनन द्वारा अपने समान संतान उत्पन्न करते हैं। भिन्न जंतुओं में प्रजनन का ढंग अलग- अलग होता है। कुछ जंतु अंडे देते हैं जिनसे शिशु निकलते हैं। कुछ जंतु शिशु को जन्म देते हैं।
- जंतुओं की तरह पौधों में भी प्रजनन के तरीके भिन्न-भिन्न हैं। बहुत से पौधे बीजों द्वारा प्रजनन करते हैं। पौधे बीज उत्पादित करते हैं। हम उन्हें अंकुरित करके नए पौधे उगा सकते हैं। कुछ पौधे बीज के अतिरिक्त अपने कायिक भागों द्वारा भी नए पौधे उत्पन्न होते हैं। उदाहरण- आलू के कलिका वाले भाग से नया पौधा बनता है।