CHAPTER- 13 प्रकाश
NOTES
1. किसी वस्तु को हम तब ही देख पाते हैं जब उस वस्तु से आने वाला प्रकाश हमारे नेत्रों में प्रकाश करें। यह प्रकाश वस्तुओं द्वारा उत्सर्जित अथवा उनसे परावर्तित हुआ हो सकता है।
2. परावर्तन का नियम- दर्पण से टकराने के पश्चात् प्रकाश-किरण दूसरी दिशा में परावर्तित हो जाती हैं।
A. आपतित किरण- किसी पृष्ठ पर पड़ने वाली प्रकाश-किरण को आपतित किरण कहते हैं।
B. परावर्तित किरण- पृष्ठ से परावर्तन के पश्चात् वापस आने वाली प्रकाश-किरण को परावर्तित किरण कहते हैं।
- जिस बिन्दु पर आपतित किरण दर्पण से टकराती है, उस पर दर्पण से 90° का कोण बनने वाली रेखा परावर्तक पृष्ठ के उस बिन्दु पर अभिलम्ब कहलाती है।
3. आपतित किरण तथा अभिलम्ब के बीच के कोण को आपतन कोण कहते हैं।
4. परावर्तित किरण तथा अभिलम्ब के बीच के कोण को परावर्तन कोण कहते है।
- आपतन कोण सदैव परावर्तन कोण के बराबर होता है। यह परावर्तन के नियमों में एक है।
- आपतित किरण, आपतन बिन्दु पर अभिलम्ब तथा परावर्तित किरण ये सभी एक तल में होते हैं। यह परावर्तन का एक अन्य नियम।
5. दर्पण द्वारा बने प्रतिबिंब में वस्तु का बायां भाग दाईं ओर तथा दायां भाग बाईं ओर दिखाई पड़ता है। इस परिघटना को पार्श्व-परिवर्तन कहते हैं।
6. नियमित तथा विसरित परिवर्तन-
A. विसरित परिवर्तन- जब सभी समान्तर किरणें किसी खुरदुरे या अनियमित पृष्ठ से परावर्तित होने के पश्चात् समान्तर नहीं होती, तो ऐसे परावर्तन को विसरित परिवर्तन कहते हैं।
B. नियमित परिवर्तन- विसरित परिवर्तन के विपरित दर्पण जैसे चिन्हों पृष्ठ से होने वाले परिवर्तन को नियमित परिवर्तन कहते हैं।
हमारे चारों ओर की लगभग सभी वस्तुएं आपको परावर्तित प्रकाश के कारण दिखाई देती है। उदाहरण- चन्द्रमा, सूर्य से प्राप्त प्रकाश को परावर्तित करता है।
7.प्रदीप्त पिण्ड- जो पिण्ड दूसरी वस्तुओं के प्रकाश में चमकते हैं उन्हें प्रदीप्त पिण्ड कहते हैं।
8.दीप्त पिण्ड- जो पिण्ड स्वयं का प्रकाश उत्सर्जित करते हैं वे दीप्त पिण्ड कहलाते हैं।
9. परिदर्शी- परिदर्शी में दो समतल दर्पण उपयोग किए जाते हैं, दो दर्पणों से परावर्तन द्वारा आप उन वस्तुओं को देखने योग्य बन पाते हैं जिन्हें सीधे नहीं देख पाते। परिदर्शी का उपयोग पनडुब्बियों, टैंकों तथा बंकरों में छिपे सैनिकों द्वारा बाहर की वस्तुओं को देखने के लिए किया जाता है।
10. बहुमूर्तिदर्शी- एक दूसरे से किसी कोण पर रखें दर्पणों द्वारा अनेक प्रतिबिंबों के बनने की धारणा का उपयोग बहुमूर्तिदर्शी (कैलाइडोस्कोप) में भांति-भांति के आकर्षक पैटर्न बनाने के लिए किया जाता है।
- कैलाइडोस्कोप की एक रोचक विशेषता यह है कि आप कभी भी एक पैटर्न दोबारा नहीं देख पाएंगे।
- हमारे नेत्रों की संरचना- हमारे नेत्र की आकृति लगभग गोलाकार हैं। नेत्र का बाहरी आवरण सफेद होता है।
- इसके पारदर्शी अग्र भाग को कार्निया या स्वच्छ मंडल कहते हैं। कार्निया के पीछे हम एक गहरे रंग की पेशियों की संरचना पाते हैं जिसे परिचारिका (आइरिस) कहते हैं। आइरिस में एक छोटा सा द्वार होता है जिसे पुतली कहते हैं।
- परितारिका नेत्र का वह भाग हैं जो इसे इसका विशिष्ट रंग प्रदान करतीं हैं।
- पुतली के पीछे एक लेंस है जो केन्द्र पर मोटा है। लेंस प्रकाश को आंख के पीछे एक परत पर फोकसित करता है। इस परत को रेटिना (दृष्टि पटल) कहते हैं। रेटिना अनेक तंत्रिका कोशिकाओं का बना होता है।
- तंत्रिका कोशिकाएं दो प्रकार की होती है- 1 शंकु, जो तीव्र प्रकाश के लिए सुग्राही होते हैं।, 2 शलाकाएं, जो मंद प्रकाश के लिए सुग्राही होती है।
- दृक् तंत्रिकाओं तथा रेटिना की संधि पर कोई तंत्रिका कोशिका नहीं होती। इस बिन्दु को अंध बिन्दु कहते हैं।
- रेटिना पर प्रतिबिंब लगभग 1/16 सेकंड तक बना रहता है।
- सामान्य नेत्र द्वारा पढ़ने के लिए सर्वाधिक सुविधाजनक दूरी लगभग 25 cm हैं।
11. नेत्रों की देखभाल-
- यदि नेत्र विशेषज्ञ द्वारा परामर्श दिया गया है तो उचित चश्में का उपयोग कीजिए।
- नेत्रों के लिए बहुत कम या बहुत अधिक प्रकाश हानिकारक है। अपर्याप्त प्रकाश से नेत्र-खिंचाव तथा सरदर्द हो सकता है। सूर्य या किसी शक्तिशाली लैम्प का अत्यधिक तीव्र प्रकाश अथवा लेजर टार्च का प्रकाश रेटिना को क्षति पहुंचा सकता है।
- सूर्य या किसी शक्तिशाली प्रकाश स्रोत को कभी भी सीधा मत देखिए।
- अपने नेत्रों को कभी भी मत रगड़िए। यदि आपके नेत्रों में कोई धूल का कण गिर जाए तो नेत्रों को स्वच्छ जल से धोइए। यदि कोई सुधार न हो तो डॉक्टर के पास जाइए।
- पठन सामग्री को सदैव दृष्टि की सामान्य दूरी पर रखकर पढ़िए। अपनी पुस्तक को नेत्रों के बहुत समीप लाकर अथवा उसे नेत्रों से बहुत दूर ले जाकर मत पढ़िए।
12. मोतियाबिंद- कभी-कभी, विशेष रूप से वृद्धावस्था में नेत्र दृष्टि धुंधली हो जाती है। यह नेत्र लेंस के धुंधला हो जाने के कारण होता है। ऐसे होने पर यह कहा जाता है कि नेत्र में मोतियाबिंद विकसित हो रहा है। इस दोष को दूर करने के लिए अपारदर्शी लेंस को हटा कर नया कृत्रिम लेंस लगा दिया जाता है।
- भोजन में विटामिन A का अभाव नेत्रों के अनेक रोगों के लिए उत्तरदायी है। इनमें सबसे अधिक सामान्य रोग रतौंधी हैं।
- लुई ब्रैल जो स्वयं एक चाक्षुष विकृति युक्त व्यक्तियों थे, ने चाक्षुष विकृति युक्त व्यक्तियों के लिए एक पद्धति विकसित की तथा इसे 1821 में प्रकाशित किया।
- चाक्षुष विकृति युक्त व्यक्ति ब्रैल पद्धति को अक्षरों से सीखना प्रारम्भ करता है। इसके पश्चात विशेष छापों एवं अक्षरों के संयोजनों को पहचानता है। ब्रैल पाठों को हाथ या मशीन से तैयार किया जा सकता है।