1. कार्बन एक सर्वतोमुखी तत्व है। सभी सजीव संरचनाएं कार्बन पर आधारित होती है।
2. आयनिक यौगिकों के गलनांक एवं क्वथनांक उच्च होते हैं तथा ये विलयन में अथवा गलित अवस्था में विद्युत चालन करते हैं।
3. अधिकांश कार्बन यौगिक अच्छे विद्युत चालक नहीं होते हैं।
4. कार्बन की परमाणु संख्या 6 है।
5. आयनिक यौगिक बनाने वाले तत्व सबसे बाहरी कोश से इलेक्ट्रान प्राप्त करके या उनका ह्रास करके इसे प्राप्त करते हैं। कार्बन के सबसे बाहरी कोश में चार इलेक्ट्रान होते हैं तथा उत्कृष्ट गैस विन्यास को प्राप्त करने के लिए इसको चार इलेक्ट्रान प्राप्त करने या खोने की आवश्यकता होती है।
A) ये चार इलेक्ट्रान प्राप्त कर C⁴⁻ ऋणायन बना सकता है, लेकिन छः प्रोटॉन वाले नाभिक के लिए दस इलेक्ट्रान अर्थात् चार अतिरिक्त इलेक्ट्रान धारणा करना मुश्किल हो सकता है।
B) ये चार इलेक्ट्रान खो कर C⁴⁺ धनायन बना सकता है, लेकिन चार इलेक्ट्रानों को खो कर छः प्रोटॉन वाले नाभिक में केवल दो इलेक्ट्रानों का कार्बन धनायन बनाने के लिए अत्यधिक ऊर्जा की आवश्यकता होगी।
6. कार्बन के अलावा अन्य अनेक तत्व भी इसी प्रकार इलेक्ट्रान की साझेदारी करके अणुओं का निर्माण करते हैं। जिन इलेक्ट्रानों की साझेदारी की जाती है, वे दोनों परमाणुओं के बाहरी कोश के ही होते हैं तथा इनके फलस्वरूप दोनों ही परमाणु उत्कृष्ट गैस विन्यास की स्थिति को प्राप्त करते हैं।
7. हाइड्रोजन का प्रत्येक अणु अपने निकटतम उत्कृष्ट गैस, हीलियम के इलेक्ट्रानिक विन्यास को प्राप्त करता है, जिसके K कोश में दो इलेक्ट्रान होते हैं।
- इलेक्ट्रान के सहभागी युग्म हाइड्रोजन के दो परमाणुओं के बीच सहसंयोजी एक आबंध बनाते हैं।
8. द्विआबंध- आक्सीजन के प्रत्येक परमाणु के द्वारा प्रदान किया गए दो इलेक्ट्रानों से इलेक्ट्रानों के दो सहभागी युग्म प्राप्त होते हैं। इसे दो परमाणुओं के बीच द्विआबंध बनना कहते हैं।
9. त्रिआबंध- नाइट्रोजन की परमाणु संख्या 7 है। अष्टक प्राप्त करने के लिए नाइट्रोजन के एक अणु में नाइट्रोजन का प्रत्येक परमाणु तीन इलेक्ट्रान देता है, जिससे इलेक्ट्रान के तीन सहभागी युग्म प्राप्त होते हैं। इसे दो परमाणुओं के बीच त्रिआबंध का बनना कहा जाता है।
10. मिथेन- कार्बन का एक यौगिक ईंधन के रूप में मेथेन का अधिकारिक उपयोग होता है तथा यह बायोगैस एवं संपीडित प्राकृतिक गैस (CNG) का प्रमुख घटक है। कार्बन के सर्वाधिक सरल यौगिकों में से एक है। सूत्र CH₄है।
11. सहसंयोजी आबंध- दो परमाणुओं के बीच इलेक्ट्रान के एक युग्म की साझेदारी के द्वारा बनने वाले आबंध सहसंयोजी आबंध कहलाते हैं।
- सहसंयोजी आबंध वाले अणुओं में भीतर तो प्रबल आबंध होता हैं, लेकिन इनका अंतराअणुक बल दुर्बल होता है।
- इन यौगिकों के क्वथनांक एवं गलनांक कम होते हैं।
- सहसंयोजी बंध की प्रकृति के कारण कार्बन में बड़ी संख्या में यौगिक बनाने की क्षमता होती है।
12. कार्बन के दो कारक-
A) कार्बन में कार्बन के ही अन्य परमाणुओं के साथ आबंध बनाने की अव्दितीय क्षमता होती है, जिससे बड़ी संख्या में अणु बनते हैं। इस गुण को श्रृंखलन कहते हैं।
- संतृप्त यौगिक- कार्बन परमाणुओं के बीच केवल एक आबंध से जुड़े कार्बन के यौगिक संतृप्त यौगिक कहलाते हैं।
- असंतृप्त यौगिक- व्दि अथवा त्रि-आबंध वाले कार्बन के यौगिक असंतृप्त यौगिक कहलाते हैं।
- कार्बन यौगिकों में जिस सीमा तक श्रृंखलन का गुण पाया जाता है वह किसी और तत्व में नहीं मिलता है।
B) कार्बन की संयोजकता चार होती है, अतः इसमें कार्बन के चार अन्य परमाणुओं अथवा कुछ अन्य एक संयोजक तत्वों के परमाणुओं के साथ आबंधन की क्षमता होती है।
13. संतृप्त एवं असंतृप्त यौगिक-
- सरल कार्बन यौगिकों की संरचना प्राप्त करने के लिए सबसे पहले कार्बन के परमाणुओं को एक आबंध के द्वारा आपस में जोड़ा जाता है तथा फिर कार्बन की शेष संयोजकता को संतुष्ट करने के लिए हाइड्रोजन के परमाणुओं का उपयोग करते हैं। उदाहरण- एथेन C₂H₆
प्रत्येक कार्बन परमाणु की तीन संयोजकता असंतुष्ट रहती है, अतः प्रत्येक का आबंध तीन हाइड्रोजन परमाणुओं के साथ किया जाता है।
- सभी परमाणुओं की संयोजकता उनके बीच बने एक आबंध से संतुष्ट होती है। ऐसे यौगिकों को संतृप्त यौगिक कहते हैं। ये यौगिक अधिक अभिक्रियाशील नहीं होते।
एथीन C₂H₄
एक आबंध के द्वारा जुड़े कार्बन परमाणु
प्रति कार्बन परमाणु की एक संयोजकता असंतुष्ट रहती है। इसको तभी संतुष्ट किया जा सकता है, जब दो कार्बनों के बीच द्विआबंध हो।
- कार्बन परमाणुओं के बीच इस प्रकार द्वि या त्रि-आबंध वाले कार्बन यौगिकों को कार्बन यौगिक कहते हैं तथा ये संतृप्त कार्बन यौगिकों की तुलना में अधिक अभिक्रियाशील होते हैं।
- समान आणविक सूत्र, लेकिन विभिन्न संरचनाओं वाले ऐसे यौगिक संरचनात्मक समावयन कहलाते हैं।
14. कार्बन अत्यंत मैत्रीपूर्ण तत्व है। हाइड्रोकार्बन श्रृंखला में यह तत्व एक या अधिक हाइड्रोजन को इस प्रकार प्रतिस्थापित करते हैं कि कार्बन की संयोजकता संतुष्ट रहती है। ऐसे यौगिकों में हाइड्रोजन को प्रतिस्थापित करने वाले तत्वों को विषम परमाणु कहते हैं।
- विषम परमाणु और वे प्रकार्यात्मक समूह जिनमें यह उपस्थित होते हैं, यौगिकों को विशिष्ट गुण प्रदान करते हैं। यह गुण कार्बन श्रृंखला की लंबाई और प्रकृति पर निर्भर नहीं होते, फलस्वरूप यह प्रकार्यात्मक समूह कहलाते हैं।
15. समजातीय श्रेणी- यौगिकों की ऐसी श्रृंखला जिसमें कार्बन श्रृंखला में स्थित हाइड्रोजन को एक ही प्रकार का प्रकार्यात्मक समूह प्रतिस्थापित करता है, उसे समजातीय श्रेणी कहते हैं।
- जब किसी समजातीय श्रेणी में आण्विक द्रव्यमान बढ़ता है तो भौतिक गुणधर्मों में क्रमबद्धता दिखाई देती है।
- किसी विशेष विलायक में विलेयता जैसे भौतिक गुणधर्म भी इसी प्रकार की क्रमबद्धता दर्शाते हैं, किंतु पूर्ण रूप से प्रकार्यात्मक समूह के द्वारा सुनिश्चित किए जाने वाले रासायनिक गुण समजातीय श्रेणी में एकसमान बने रहते हैं।
16. कार्बन यौगिकों की नामपद्धति- किसी समजातीय श्रेणी में यौगिकों के नामों का आधार बेसिक कार्बन की उन मूल श्रृंखलाओं पर आधारित होता है, जिनको प्रकार्यात्मक समूह की प्रकृति के अनुसार पूर्वलग्न उपसर्ग या अनुलग्न प्रत्यय के द्वारा संशोधित किया गया हो।
विधि जिसके द्वारा किसी कार्बन यौगिक का नामकरण किया जा सकता है-
A) यौगिक में कार्बन परमाणुओं की संख्या ज्ञात कीजिए। तीन कार्बन परमाणु वाले यौगिक का नाम प्रोपेन होगा।
B) प्रकार्यात्मक समूह की उपस्थिति में इसको पूर्वलग्न अथवा अनुलग्न के साथ यौगिक के नाम में दर्शाया जाता है।
C) यदि प्रकार्यात्मक समूह का नाम अनुलग्न के आधार पर दिया जाना हो तथा यदि प्रकार्यात्मक समूह के अनुलग्न नाम स्वर a,e,i,o,u से प्रारंभ होता हो तो कार्बन श्रृंखला के नाम से अंत का 'e' हराकर, उसमें समुचित अनुलग्न लगाकर संशोधित करते हैं।
D) असंतृप्त कार्बन श्रृंखला में कार्बन श्रृंखला के नाम में दिए गए अंतिम 'ane' को ene या gne से प्रतिस्थापित करते हैं।
17. कार्बन यौगिकों के रासायनिक गुणधर्म-
a) दहन- सभी अपररूपों में कार्बन, आक्सीजन में दहन करके ऊष्मा एवं प्रकाश के साथ कार्बन डाइऑक्साइड देता है। दहन पर अधिकांश कार्बन यौगिक भी प्रचुर मात्रा में ऊष्मा एवं प्रकाश को मुक्त करते हैं।
C+O2→CO2+ ऊष्मा एवं प्रकाश
b) आक्सीकरण- कुछ पदार्थों में अन्य पदार्थों को आक्सीजन देने की क्षमता होती है। इन पदार्थों को आक्सीकारक कहा जाता है।
- क्षारीय पोटैशियम परमैंग्नेट अथवा अम्लीकृत पोटैशियम डाइक्रोमेट एल्कोहलों को अम्लों में आक्सीकृत करते हैं अर्थात् ये आरंभिक पदार्थ में आक्सीजन जोड़ते हैं।
c) संकलन अभिक्रिया- पैलेडियम अथवा निकैल जैसे उत्प्रेरकों की उपस्थिति में असंतृप्त हाइड्रोकार्बन हाइड्रोजन जोड़कर संतृप्त हाइड्रोकार्बन देते हैं। उत्प्रेरक वे पदार्थ होते हैं, जिनके कारण अभिक्रिया भिन्न दर से आगे बढ़ती है, जो अभिक्रिया को प्रभावित नहीं करतें हैं। निकैल उत्प्रेरक का उपयोग करके साधारणतः वनस्पति तेलों के हाइड्रोजनीकरण में इस अभिक्रिया का उपयोग होता है।
d) प्रतिस्थापन अभिक्रिया- सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में अति तीव्र अभिक्रिया में क्लोरिन का हाइड्रोकार्बन में संकलन होता है। क्लोरीन एक-एक करके हाइड्रोजन के परमाणुओं का प्रतिस्थापन करती है। इसको प्रतिस्थापन अभिक्रिया कहते हैं।
18. एथनॉल तथा एथेनॉइक अम्ल
एथनॉल के गुणधर्म- एथनॉल कक्ष के ताप पर द्रव अवस्था में होता है। एथनॉल को एल्कोहल कहा जाता है तथा यह सभी एल्कोहल पेय पदार्थों का महत्वपूर्ण अवयव होता है। यह एक अच्छा विलायक हैं।
- इसका उपयोग टिंचर आयोडीन, कफ सीरप, टाॅनिक आदि जैसी औषधियों में होता है।
एथनॉल की अभिक्रियाएं-
a) सोडियम के साथ अभिक्रिया-
2Na+2CH3CH2OH→2CH3CH2O−Na++H2
एल्कोहल सोडियम से अभिक्रिया कर हाइड्रोजन गैस उत्सर्जित करता है। एथनॉल के साथ अभिक्रिया में दूसरा उत्पाद सोडियम एथाॅक्साइड बनता है।
b) असंतृप्त हाइड्रोकार्बन बनाने की अभिक्रिया- 443K तापमान पर एथनॉल को अधिक्य सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ गर्म करने पर एथनॉल का निर्जलीकरण होकर एथीन बनता है।
CH3CH2OH→CH2=CH2+H2O
इस अभिक्रिया में सल्फ्यूरिक अम्ल निर्जलीकरण के रूप में काम करता है, जो एथनॉल से जल को अलग कर देता है।
एथेनाॅइक अम्ल के गुणधर्म- एथेनॉइक अम्ल को सामान्यतः ऐसीटिक अम्ल कहा जाता है तथा यह कार्बोक्सिलिक अम्ल समूह से संबंधित है।
- ऐसीटिक अम्ल के 3-4% विलयन को सिरका कहा जाता है एवं इसे अचार में परिरक्षक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
- शुद्ध एथनॉइक अम्ल का गलनांक 290K होता है और इसलिए ठंडी जलवायु में शीत के दिनों में यह जम जाता है। इस कारण इसे ग्लैशल एसीटिक अम्ल कहते हैं।
एथेनाॅइक अम्ल की अभिक्रियाएं-
a) एस्टरीकरण अभिक्रिया- एस्टर मुख्य रूप से अम्ल एवं एल्कोहल की अभिक्रिया से निर्मित होते हैं। एथेनाॅइक अम्ल किसी अम्ल उत्प्रेरक की उपस्थिति में परिशुद्ध एथनॉल से अभिक्रिया करके एस्टर बनाते हैं-
CH3COOH+CH3CH2OH⇌CH3COOCH2CH3+H2O
- सोडियम हाइड्राॅक्साइड से अभिक्रिया द्वारा, जो एक क्षार है, एस्टर पुनः एल्कोहल एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल का सोडियम लवण बनाता है। इस अभिक्रिया को साबुनीकरण कहा जाता है।
- CH3COOC2H5+NaOH→C2H5OH+CH3COONa
b) क्षारक के साथ अभिक्रिया- खनिज अम्ल की भांति एथेनॉइक अम्ल सोडियम हाइड्रॉक्साइड जैसे क्षारक से अभिक्रिया करके लवण तथा जल बनाता है।
NaOH+CH3COOH→CH3COO−Na++H2O
c) कार्बोनेट एवं हाइड्रोजन कार्बोनेट के साथ अभिक्रिया- एथेनॉइक अम्ल कार्बोनेट एवं हाइड्रोजन कार्बोनेट के साथ अभिक्रिया करके लवण, कार्बन डाइऑक्साइड एवं जल बनाता है। इस अभिक्रिया में उत्पन्न लवण को सोडियम ऐसीटेट कहते हैं।
2CH3COOH+Na2CO3→2CH3COONa+H2O+CO2
CH3COOH+NaHCO3→CH3COONa+H2O+CO2
19. साबुन और अपमार्जक-
- साबुन के अणु लंबी श्रृंखला वाले कार्बोक्सिलिक अम्लों के सोडियम एवं पोटैशियम लवण होते हैं। साबुन का आयनिक भाग जल से जबकि कार्बन श्रृंखला तेल से पारस्परिक क्रिया करती है।
- साबुन के अणु ऐसे होते हैं, जिनके दोनों सिरों के विभिन्न गुणधर्म होते हैं। जल में विलेय एक सिरे को जलरागी कहते हैं तथा हाइड्रोकार्बन में विलेय दूसरे सिरे को जलविरागी कहते हैं।